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________________ इस ग्रन्थ की कथा का मुल आधार अग्निशर्मा एवं गुणसेन के जीवन की घटना है। अपमान से दुखी होकर अग्निशर्मा प्रतिशोध की भावना मन में लाता है । इस निदान के फल वरूप 9 भवों तक वह गुणसेन के जीव से बदला लेता है। वास्तव में समराइच्चकहा की कथावस्तु सदाचार और दुराचार के संघर्ष की कहानी है । प्रसंगवश इसमें अनेक कथाए भी गुथी हुई हैं समराइच्चकहा में प्राकृत गद्य एवं पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है । कथाकार का कवित्व इस ग्रन्थ में पूरी तरह प्रकट हुआ है । एक स्थान पर राजा को बोमारो से व्याकुल अन्तःपुर का वर्णन करते हुए कथाकार कहता है तहा मिलाणसुरहिमल्ल दामसोहं, सुवण्णगड्ढवियलियअगरायं, बाहजल धोयकवोलपत्तलेह, करयलपॉमियपवायवयणपंकयं, उबिग्गमन्तेउर। -प्रथम भव पृ. 24 समराइच्चकहा गुप्तकालीन संस्कृति की दृष्टि से भी विशेष महत्त्व की है। इस ग्रन्था में समुद्रयात्रा आदि के जो वर्णन हैं, वे भारतीय पथ-पद्धति पर विशेष प्रकाश डालते हैं। कुवलयमाला कहा : आचार्य हरिभद्र के शिष्य उद्द्योतनसूरि ने ई. ७७६ में जालौर में कुवलयमाला कहा की रचना की है। यह ग्रन्थ गद्य एवं पद्य दोनों में लिखा गया है । किन्तु इसकी विशिष्ट शैली के कारण इसे प्राकृत का चम्पू ग्रन्थ भी कहते हैं । कुवलयमाला की कथावस्तु भी एक नवीनता लिये हुए है । इसमें क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह जैसी मानसिक वृत्तियों को पात्र बनाकर उनकी चार जन्मों की कथा कही गयी है। कुवलयमाला नैतिक आचरण को प्रतिपादित करने वाला कथा ग्रन्थ है। । साहित्य. के माध्यम से जन-सामान्य के आचरण को कैसे संतुलित किया जा सकता है, इसका उदाहरण यह ग्रन्थ है। प्रेमकथा, अर्थ 134 प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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