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________________ (क) आगम कथ ! -ग्रन्थ : ज्ञाताधर्मकथा : श्रागम ग्रन्थों में कथा-तत्व के अध्ययन की दृष्टि से ज्ञाताधर्मकथा में पर्याप्त सामग्री है। इसमें विभिन्न दृष्टान्त एवं धर्मकथाएं हैं, जिनके माध्यम से जैन तत्त्व-दर्शन को सहज रूप में जन-मानस तक पहुँचाया गया है । ज्ञाताधर्मकथा आगमिक कथाओं का प्रतिनिधि ग्रन्थ है । इसमें कपों की विविधता है और प्रोढ़ता भी । मेवकुमार, थावच्चापुत्र मल्ली तथा द्रोपदी की कथाएं ऐतिहासिक वातावरण प्रस्तुत करती हैं । प्रतिबुद्धराजा, अन्नक व्यापारी, राजा रुक्मी, स्वर्णकार की कथा, चित्रकारकथा चोखा परिव्राजिका आदि कथाएं मल्ली की कथा की अवान्तर कथाए हैं। मूलथा के साथ अवान्तर कथा की परम्परा की जानकारी के लिए ज्ञाताधर्मकथा आधारभूत स्रोत है । ये कथाएं कल्पना प्रधान एवं सोद्देश्य हैं । इसी तरह जिनपाल एवं जिनरक्षित की कथा, तेतलीपुत्र, सुषमा की कथा एक पुण्डरीक कथा कल्पना प्रधान कथाएं हैं । ज्ञाताधर्मकथा में दृष्टान्त और रूपक कथाएं भी हैं । मयूरों के अण्डों के दृष्टान्त से श्रद्धा और संशय के फल को प्रकट किया गया है । दो कछुओं के उदाहरण से संयमी और असंयमी साधक के परिणामों को उपस्थित किया गया है । तुम्बे के दृष्टान्त से कर्मवाद को स्पष्ट किया गया है। चन्द्रमा के उदाहरण से आत्मा की ज्योति की स्थिति स्पष्ट की गयी है । दावद्रव नामक वृक्ष के उदाहरण द्वारा आराधक और विराधक के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है । ये दृष्टान्त कथाएं परवर्ती कथा साहित्य के लिए प्रेरणा प्रदान करती हैं । इस ग्रन्थ में कुछ रूपक कथाएं भी हैं । दूसरे अध्ययन की कथा धन्ना सार्थवाह एवं विजय चोर की कथा है। यह आत्मा और शरीर के में सम्बन्ध का रूपक है। सातवें अध्ययन की रोहिणी कथा पांच व्रतों की रक्षा और वृद्धि को रूपक द्वारा प्रस्तुत करती है । उदकजात नामक कथा प्राकृत गद्य-सोपान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 129 www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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