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________________ (ग) प्राकृत भाषा एवं साहित्य १. प्रमुख प्राकृत भाषाए भारत की प्राचीन भाषाओं में प्राकृत-भाषा साहित्य एवं संस्कृति की दृष्टि से पर्याप्त समृद्ध है। प्राकृत भाषा की प्राचीनता एवं उसकी विशेषताओं के सम्बन्ध में प्राकृत-स्वयं-शिक्षक एवं प्राकृत-काव्य-मंजरी की भूमिका आदि में प्रकाश डाला जा चुका है। प्राकृत भाषा के भेद-प्रभेदों का संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है । प्राकृत भाषा की उत्पत्ति एवं विकास की दृष्टि से उसके मुख्यतः दो भेद किये जा सकते हैं। प्रथम कथ्य-प्राकृत, जो बोल-चाल में बहुत प्राचीन समय से प्रयुक्त होती रही है। किन्तु उसका कोई लिखित उदाहरण हमारे समक्ष नहीं है। दूसरी प्रकार की प्राकृत साहित्य की भाषा है, जिसके कई रूप हमारे समक्ष उपलब्ध हैं। इस साहित्यिक प्राकृत के भाषा-प्रयोग एवं काल की दृष्टि से तीन भेद किये जा सकते हैं- 1. आदियुग, 2. मध्ययुग एवं 3. अपभ्रंशयुग। ई. पू. छठी शताब्दी से ईसा की द्वितीय शताब्दी के बीच प्राकृत में निर्मित साहित्य की भाषा प्रथमयुगीन प्राकृत कही जा सकती है। इस प्राकृत भाषा के पांच रूप हैं - 1. आर्ष प्राकृत : भगवान बुद्ध और महावीर के उपदेशों की भाषा क्रमशः पालि और अर्धभागधी के नाम से जानी गयी है । धार्मिक प्रचार के लिए सर्व प्रथम इन भाषाओं का महापुरुषों द्वारा उपयोग हुआ इसलिए इनको ऋषियों की भाषा पार्षप्राकृत कहना उचित है। 2. शिलालेखी प्राकृत : जन-भाषा प्राकृत को प्रचोन राजाओं ने अपने राजकाज की भाषा भी बनाया। लिखित रूप में प्राकृत भाषा का सबसे पुराना 122. प्राकृत गद्य-सोपानः Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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