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________________ पाठ 30 : अंगुली अयस्स पति पाठ-परिचय : महाकवि कालिदास ने लगभग चौथो शताब्दी में प्रभिज्ञानशाकुन्तलं नाटक लिखा है । उसके अधिकांश पात्र प्राकृत भाषा का प्रयोग करते हैं। इस नाटक में राजा दुष्यन्त एवं ऋषिकन्या शकुन्तला के प्रेम की कथा वरित है । राजा की अंगूठी को नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका है। वही अंगूठी शकुन्तला की अंगुली से नदी में गिर जाती है । अंगूठी के अभाव में राजा शकुन्तला को अपनी पत्नी स्वीकार नहीं करता है । प्रस्तुत कथोपकथन में उसी नदी के मछुआरे को राजा के सिपाहियों और कोतवाल ने पकड़ लिया है। मछुआरा अपनी निर्दोषता प्रकट कर रहा है कि उसने चुरायी नहीं है । उसे वह मछली के पेट में मिली है । सिपाही उसे दण्ड दिलाने के लिए राज दरबार में ले जाते हैं । अंगूठी पांकर राजा उस मछुआरे को पुरष्कृत करता है । (तओ पविसइ गागरिओ सालो, पच्छा बद्धपुरिसं गेण्हंता दुवे रक्खिणा च ) वे रक्खा (ताऊ) अले, कु.भीला ! कहेहि कहि तुए एशे मणिबंध किरणरणा महेए लानकीए प्रगुलीनए शमाशादिए ? (भी गाडियए) पशीदंतु भावमिश्शे ! हगे ईदिकमकाली । किं खुशोहणे म्हणे त्ति कलि लगा पडिग्गहे दिण्णे ? 114 पुरिसो पढमो रविखरणो Jain Educationa International - पुरिसो शुगुह दारिंग | हगे शक्कावदालब्भंतरालवाशी धवले । For Personal and Private Use Only प्राकृत गद्य-सोपान www.jainelibrary.org
SR No.003807
Book TitlePrakrit Gadya Sopan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1983
Total Pages214
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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