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________________ ३८४ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् अनुत्तमत्वात् । न, अन्यगुणापेक्षाऽनुत्तमत्वस्य मुक्तिप्राप्त्यप्रतिबन्धकत्वादन्यथा तीर्थकृद्गुणापेक्षया गणधरादेरप्यनुत्तमत्वात् मुक्तिप्राप्त्यभावो भवेत् । अथाशेषकर्मक्षयनिबन्धनस्याध्यवसायस्य गणधरादिषु तीर्थकृदपेक्षया तुल्यत्वादयमदोषः। समानमेतदबलास्वपि तथाविधयोग्यतामापन्नासु।। अथ महाव्रतस्थपुरुषावन्द्यत्वात् न तासां मुक्त्यवाप्तिः तर्हि गणधरादेरप्यर्हदवन्द्यत्वात् न मुक्त्यवाप्तिः स्यात् । अथ 'तित्थपणामं काउं' "(आ० नि० गाथा ४५) इत्याद्यागमप्रामाण्यात् प्रथमगणधरस्य 'तीर्थ' शब्दाभिधेयत्वात् तदवन्द्यत्वं तस्याऽसिद्धम् – तर्हि चातुर्वर्ण्यश्रमणसंघस्यापि 'तीर्थ' शब्दवाच्यत्वात् तत्र तु तासामन्तर्भावात् महाव्रतस्थपुरुषाऽवन्द्यत्वं तासामप्यसिद्धम् । तन्न युक्त्यागमाभ्यां तासां मुक्तिप्राप्त्यभावः प्रतिपत्तुं शक्यः। तत्सद्भावस्तु प्रदर्शितागमात् युक्तितश्च प्रतीयत एव । तथाहि – विमत्यधिकरणभावापन्नाः स्त्रियो मुक्तिभाजः अवाप्ताशेषकर्मक्षयनिबन्धनाध्यवसायत्वात्, उभयाभिमतगणधरादिपुरुषवत् इत्याद्यागमयुक्तिगर्भमनुमानं निर्दोषं युक्तिशब्दवाच्यं समस्त्येव । दिगम्बर :- लोकव्यवहार में जैसे पुरुष उत्तम होते हैं ऐसे ही लोकोत्तर धर्मक्षेत्र में भी पुरुष ही उत्तम होते हैं अतः उनको मोक्षप्राप्ति हो सकती है, महिलाओं को नहीं, क्योंकि वे उत्तम नहीं होती। यथार्थवादी :- यह तर्क भी अयोग्य है। शरीरबलादि अन्यगुणों की अपेक्षा महिलाएँ अनुत्तम हो इस से मोक्षलाभ में कोई प्रतिबन्ध नहीं हो जाता। अन्यथा, तीर्थंकर प्रभु के गुणों की तुलना में गणधरादि भी अनुत्तम होने से उन को भी मोक्षलाभ न होने का संकट होगा। यदि कहा जाय - ‘गणधरादि में सकलकर्मक्षयहेतु अध्यवसाय तीर्थंकर की तुलना में समान ही होता है इसलिये मुक्ति-अभाववाला संकट नहीं होगा।' - तो वैसी समानयोग्यता धारण करने वाली महिलाओं में भी यह बात समान ही है। मतलब, सकलकर्मक्षयसाधक अध्यवसाय महिलाओं में, पुरुषों की तुलना में समान ही होता है। * महाव्रति-अवन्द्यत्व हेतु की दुर्बलता * दिगम्बर :- अङ्गना महाव्रतधारी पुरुषों के लिये अवन्द्य होने से उन की मुक्ति नहीं हो सकती। यथार्थवादी :- ऐसे तो गणधरादि मुनिवर्ग भी तीर्थंकरों के लिये अवन्द्य है तो गणधरादि की मुक्ति कैसे होगी ? दिगम्बर :- आप के आगम में 'तीर्थ को प्रणाम करके भगवान योजनगामिनी सभी समझ सके ऐसी साधारण वाणी से सभी संज्ञिजीवों को (धर्म) सुनाते हैं।' - इस प्रकार के शास्त्र में तीर्थंकर भगवान तीर्थ को प्रणाम करते हैं यह कहा हुआ है। तथा पहले गणधर की 'तीर्थ' में गणना की हुई है इसलिये गणधर तीर्थंकर से अवन्द्य न होने से उनकी मुक्ति में बाध नहीं होगा। यथार्थवादी :- साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका यह चतुर्विधसंघ भी 'तीर्थ' शब्द का अभिधेय है जो कि तीर्थंकर से वन्द्य है, उस में स्त्री का भी अन्तर्भाव है इसलिये महिला महाव्रतधारीपुरुष से अवन्द्य होने का विधान असत्य है। निष्कर्ष – युक्ति या आगम से महिलाओं में मोक्षलाभ का अभाव सिद्ध नहीं हो सकता। हमने जो आगम और युक्तियों का उपन्यास किया है उन से तो उलटा स्त्रीमुक्ति का सद्भाव ही सिद्ध होता है। देखिये – विवाद के अधिकरणभूत महिला मोक्षलाभ की अधिकारी है क्योंकि सकलकर्मक्षय कारक अध्यवसाय से अवंचित है जैसे उभयसम्मत गणधरादिपुरुष । इस प्रकार आगम एवं युक्तियों से गर्भित, 'युक्ति' अपरनाम यह अनुमान निर्दोष है। . तित्थपणामं काउं कहेइ साहारणेण सद्देण। सव्वेसिं संनीणं जोअणनिहारिणा भयवं ।। (आवश्यक नि० ४५) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003805
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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