SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय निर्देश पृष्ठ विषय पृष्ठ विषय ११६...शास्त्रादि की निरर्थकता/सार्थकता १२९ ...भिन्नकालीन अर्थों में विशेषण-विशेष्यभाव नहीं ११६ ...सुनिश्चितअसंभवद् बाधक प्रमाणत्व हेतु १३० ...समकालीन अर्थों में विशेषण-विशेष्य भाव नहीं अव्यभिचारी | १३१ ...कल्पनाप्रेरित वि.वि.भाव की स्पष्टता ११७ ...प्रमेय एवं प्रमाण की शून्यता का निरसन |१३१ ...पूर्वज्ञान सामर्थ्य/सहकार का प्रत्यक्षग्रहण ११८ ...प्रतिभासभेद के अपलाप की अयुक्तता असम्भव ११८ ... सर्वधर्म मायातुल्य'कथन की अयुक्तता |१३२ ...शुद्ध दर्शन असंनिहितविशेषण का असंवेदक ११९ ...निर्विकल्पप्रत्यक्षप्रमाणवादिवैभाषिकमत- | १३३ ...विकल्प के विना प्रवृत्ति अनुपपन्न प्रदर्शनम् १३३ ...स्पष्टदर्शन ही प्रवृत्ति कारक ११९ ...वैयाकरणमतप्रतिषेधेन स्वमतस्थापना बौद्धेन | १३४ ...विकल्पमति से प्रवृत्ति अशक्य ११९...निर्विकल्प प्रत्यक्ष ही प्रमाण - बौद्धमत १३४ ...भूतपूर्व अर्थक्रियासाधक अर्थ का वर्तमान अर्थ ११९ ...सविकल्प ही प्रत्यक्ष प्रमाणभूत-वैयाकरणमत से अभेद कैसे ? १२० ...प्रत्यक्ष प्रतीति वारगर्भित नहीं होती-बौद्धमत | १३५ ...उत्तरकालीन सविकल्प प्रत्यक्ष से तत्त्व का १२१...अर्थों की शब्दाकारता प्रमाणसिद्ध नहीं अवभास १२१...चाक्षुष प्रत्यक्ष में शब्द का भान असंभव | १३५ ...अध्यक्ष से अभेदतत्त्व का अवभास अशक्य १२२ ...एक इन्द्रिय से सर्वेन्द्रियगम्य विषय ग्रहण की | १३६ ...स्मृतिसहकृत अध्यक्ष सत्यार्थग्राहि नहीं आपत्ति |१३६ ...दर्शनप्रदर्शित अर्थ का स्मृति द्वारा उल्लेख १२२ ...चाक्षुष दर्शन और वागनुसन्धान में भेद का | निष्प्रमाण आपादन | १३७ ...पूर्वदर्शन से पूर्वरूपताविशेषित अर्थ का ग्रहण १२२ ...शब्दाश्लिष्ट बोधसंवेदन की अवास्तविकता अशक्य १२३ ...भिन्नज्ञानग्राह्य अर्थ विशेषण नहीं बनता |१३७ ...दृष्टता दर्शन से गृहीत नहीं होती १२४ ...स्मृतिगत उपराग से दर्शन के उपराग की सिद्धि | १३८ ...दृष्टता अर्थस्वरूप नहीं, पूर्वज्ञानस्वरूप है अशक्य १३८ ...दृश्यमान और स्मर्यमाण के भेद का उपपादन १२५ ...बालक में संकेतित अर्थ-आश्लेष की अनुपपत्ति | १३९ ...पूर्वरूपता का ग्रहण माने तो भाविरूपता के १२५ ...वैखरी-मध्यमा-पश्यन्ती-परावाक् चतुर्भेद ग्रहण की आपत्ति १२६ ...टीप्पणी-वाक्यपदीयटीका पाठ | १३९ ...पूर्व-भाविरूपता उभय के प्रति असंनिकृष्टता १२७ ...निर्विकल्प के विना वाक संस्मरण और विकल्प का असम्भव १४० ...पूर्वरूपता का ग्रहण मानने पर त्रिकालदर्शित्व १२८ ...केवलसविकल्पप्रामाण्यस्थापना तन्निरसनं च प्रसक्ति १२८ ...नियतदेशादिस्थित वस्तुग्राहि प्रत्यक्ष की स्थापना | १४१ ...उत्तरकाल में पूर्वरूपता का चाक्षुषग्रहण असम्भव १२८ ...नियतदेशादिविशेषण-विशेष्यभाव का प्रत्यक्ष | १४२ ...प्रत्यक्ष से जात्यादिविशिष्ट अर्थ का ग्रहण असंभव असम्भव १२९...अनुमानोपलब्ध अर्थ प्रत्यक्षार्थ का विशेषण | १४३ ...जातिसिद्धि के तर्क निरर्थक नहीं बनता | १४४ ...सविकल्प प्रत्यक्ष भी साक्षात् प्रवृत्तिकारक नहीं तुल्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy