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________________ पृष्ठांक: विषयः पृष्ठांक विषयः ४६६ कार्यसम जात्युत्तर की आशंका ४८३ इन्द्रिय और अदृश्य तत्कालीन अग्नि की ४६६ कार्यसमत्व की आशंका का प्रत्युत्तर कल्पना में साम्य ४६७ व्यापक-नित्यबुद्धिवाला एक कर्ता असिद्ध |४८४ कर्तृ-करणपूर्वकत्व सभी कार्य में सिद्ध नहीं है ४६७ पक्षधर्मता के बल से विशेष व्यक्ति की सिद्धि | ४८५ केवल चैतन्यमात्र से वस्तु का अधिष्ठान दुष्कर असंगत ४६८ विलक्षणव्यक्तिआश्रित बुद्धिमत्कारणत्व | ४८५ कार्य शरीरद्रोही नहीं है सामान्य की सिद्धि अशक्य ४८६ शरीर के विरह में कार्योत्पादन का असंभव ४६६ सहेतुकत्व के अतिक्रम की आपत्ति का प्रति- ४८६ शरीर के विरह में प्रयत्न का असंभव कार ४६९ कार्यत्वसामान्य से कारणविशेष का अनुमान ४८७ अंकुरादि में कर्ता के अभाव को अनुमान में सिद्धि मिथ्या है ४७० शरीर के विना कर्ता को मानने में दृष्ट | ४८८ व्यतिरेकानुसर की उपलब्धि की आव. व्यतिक्रम श्यकता ४७१ शरीरसम्बन्ध के विना कर्तृत्व की अनुपपत्ति | ४८८ व्यापार के व्यतिरेकानुसरण की अनुपलब्धि ४८६ समवाय सर्वदा सर्वत्र होने पर भी अनुपपत्ति ४७२ पूर्वपक्षी कथित बातों का क्रमशः निराकरण ४६० ईश्वरज्ञानादि को अनित्य मानने पर छात४७३ व्युत्पन्न को भी संस्थानादि से बुद्धिमत्कारण रेकानुपलब्धि ____ अनुमान नहीं होता ४७३ केवलमि-धर्मभाव से साध्यसिद्धि अशक्य ४९० सहकारिकारणजन्य ईश्वरज्ञान मानने पर आपत्ति ४७४ साधर्म्यमात्र से कर्ता का अनुमान दुःशक्य ४६१ सहकारिवर्ग और ईश्वरज्ञान की एक सामग्री ४७५ कार्यत्व केवल कारणत्व का ही व्याप्य है जन्यता में आपत्ति ४७५ बुद्धिमत्कारणविशेष की उपलब्धि निर्मूल है ४६२ ईश्वरज्ञानादि को सहकारि हेतु सहोत्पन्न ४७६ संयोग की तरह विभाग भी असिद्ध है । मानने में प्रापत्ति ४७७ सभी कार्य कर्तृ पूर्वक नहीं होते यह ठीक ४९३ बुद्धिमत्कारणानुमान व्यापकानुपलब्धि का . कहा है __ अबाधक ४७७ धर्माधर्म की कारणता सलामत है । ४७८ सकल उपादानादि के ज्ञातारूप में ईश्वर ४९३ लोहलेख्यत्वानुमान से प्रत्यक्ष का बाध क्यों नहीं ? प्रसिद्ध ४६४ भावी बाधकानुपलम्भ का निश्चय अशक्य ४७९ शरीर के विना कर्तृत्व को अनुपपत्ति से हेतु ४६५ बुद्धिमत्कारणानुमान में विपक्ष में बाधक का साध्यद्रोही अभाव ४८० ईश्वर का शरीर अदृश्य होने की बात ४६५ विषय का अविसंवाद प्रामाण्य का मूल असंगत ४८० ईश्वर के अनेक शरीर की कल्पना प्रयुक्त ४९६ व्यापकानुपलब्धि में पक्षधर्मत्वादि का ___ अभाव नहीं ४८१ इन्द्रिय से उत्पन्न ज्ञान सम्पूर्ण हो नहीं सकता ४८२ ऐन्द्रियक ज्ञान सर्वविषयक न होने में युक्ति ४९६ व्यापकानुपलब्धि हेतु में साध्य के अन्वयादि ___ की सिद्धि ४८२ अंकुरादि दृश्यशरीरसम्बद्ध पुरुष से ही होने की आपत्ति ४९७ परमाणु आदि से कार्यत्व की निवृत्ति प्रसिद्ध www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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