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________________ पृष्ठांक विषयः पृष्ठांकः विषयः ३८५ बौद्धों के मत से भी कार्यत्व हेतु प्रसिद्ध नहीं ४०८ अनेक बुद्धिमान कर्ता मानने में प्रापत्ति ३८६ मीमांसक के मत से भी हेतु असिद्ध नहीं |४०६ ईश्वर में प्रसंग-विपर्यय भी बाधक नहीं ३८७ चार्वाक के मत से भी हेतु असिद्ध नहीं ४०६ वात्तिककार के दो अनुमान ३८७ नैयायिक के सामने विस्तृत पूर्वपक्ष ४१० अविद्धकर्ण का प्रथम अनुमान ३८९ नैयायिक मत में दृष्टहानि-अदृष्टकल्पना |४११ प्रथम अनुमान के पक्षादि का विश्लेषण ३८६ पक्ष में अन्तर्भाव करके व्यभिचारनिवारण ४११ अविद्धकर्ण का दूसरा अनुमान अशक्य |४१२ उद्योतकर और प्रशस्तमति के अनुमान ३९० पूर्वपक्षी को नैयायिक का प्रत्युत्तर | ४ १२ सर्वज्ञता के विना भक्ति का पात्र कैसे ? ३९१ अदृष्ट और ईश्वर की कल्पना में साम्य |४१३ नैयायिक के पूर्वपक्ष का उपसंहार ३६२ कार्यत्व हेतु में व्यतिरेकसंदेह से व्यभिचार ४१४ ईश्वरकतत्ववादसमालोचना-उत्तरपक्ष शंका का उत्तर |४१४ देहादि अवयवी असिद्ध होने से प्राश्रया-सिद्धि ३६२ अग्निवत ईश्वर की कल्पना अनावश्यक ४१५ अवयवी का विरोध स्वतन्त्रसाधन या प्रसंग३९३ कर्ता का अनुपलम्भ शरीराभावकृत साधन ३६४ जडवस्तु में इच्छानुत्तित्व की प्रसिद्धि |४१६ अवयवी का विरोध प्रसंगसाधनात्मक है ३६४ कार्यत्व हेतु मे सत्प्रतिपक्षतादि का निराकरण |४१७ प्रतिभास भेद से भेदसिद्धि ३९५ विशेषविरूद्धता सद्धेतु का दूषण नहीं है। ४१७ अवयव-अवयवी की समानदेशता असिद्ध ३६६ विशेषविरुद्धता दूषण क्यों नहीं-उत्तर |४१८ अवयवी का स्वतन्त्रप्रतिभास विरोधग्रस्त ३९७ ईश्वर के देहाभावादि विशेषों की सिद्धि | ४१९ स्पष्ट-अस्पष्टस्वरूपद्वय में एकता असिद्ध में प्रमाण |४२० प्रतिभासभेद विषयभेदमूलक ही होता है ३९७ पक्षधर्मता के बल से विशेषसिद्धि |४२१ अवयवी के प्रतिभास की दो विकल्प से ३९८ विशेषव्याप्ति के बल से विशेषसाध्य की सिद्धि अनुपपत्ति ३९९ शरीररूप आपादितविशेष का निराकरण ४२२ अग्र-पृष्ठ भागवर्ती अवयवी का प्रतिभास ४०० अतीन्द्रिय अर्थ के निषेध का वास्तव उपाय अशक्य ४०० असर्वज्ञत्वरूप आपादितविशेष का निराकरण | ४२२ स्मरण से अवयवी का ग्रहण अशक्य ४०१ सचेतन देह में ईश्वर के अधिष्ठान की सिद्धि | ४२३ प्रत्यभिज्ञा ज्ञान से अवयवी की सिद्धि अशक्य ४०२ ईश्वर की सिद्धि में पागम प्रमाण | ४२३ ‘स एवायम्' यह प्रतीति एक नहीं है ४०२ स्वरूपप्रतिपादक आगम भी प्रमाण है | ४२५ ‘एको घटः' प्रतीति से स्थूल द्रव्य की सिद्धि ४०३ स्वरूपार्थक आगम अप्रमाण मानने पर आपत्ति अशक्य ४०४ 'पत्थर तैरते हैं। इस प्रयोग के प्रामाण्य का | ४२६ अवयवी के बिना स्थूलप्रतिभास की अनुपनिषेध पत्ति-पूर्वपक्ष ४०४ सर्वज्ञता की साधक युक्ति । ४२७ निरंतर उत्पन्न परमाणवों से स्थलादि प्रति४०५ ईश्वर की कोडाहेतुक प्रवृत्ति भी निर्दोष भास की उपपत्ति ४०६ भगवान की प्रवृत्ति करुणामूलक ४२७ समवाय की असिद्धि से बुद्धिमत शब्दार्थ की ४०६ केवल सुखात्मक सर्गोत्पत्ति न करने में हेतु अनुपपत्ति ४०७ ईश्वर का ज्ञान अनित्य नहीं हो सकता | ४२६ जान ईश्वर में व्यापकरूप से नहीं रह सकता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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