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________________ १९८ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १ अथ सर्वज्ञत्वादन्यः तदभावः, तद्विषयं ज्ञानं तदन्यज्ञानं, तदाऽत्रापि कि 'सर्वदा सर्वत्र सर्वः सर्वज्ञो न' इत्येवं तत् प्रवर्तते, उत 'कुत्रचित कदाचित कश्चित् सर्वज्ञो न' इत्येवं ? तत्र नाद्यः पक्षः, सकलदेशकालपुरुषाऽसाक्षात्करणे तदाधारस्य तदभावस्यावगंतुमशक्यत्वात, प्रदेशाऽप्रत्यक्षीकरणे तदाधारस्य घटाभावस्येव । तत्साक्षात्करणे च तदेव सर्वज्ञत्वम् , इति न तदभावसिद्धिः । अथ द्वितीयः पक्षः, तदा न सर्वत्र सर्वदा सर्वज्ञामावसिद्धिरिति तदेव सिद्धसाधनम् । 'प्रमाणपंचकनिवृत्तेस्तदभावज्ञानम्' इत्यादि सर्व प्रतिविहितमिति नाभावप्रमाणादपि तदभावावगमोऽभ्युपगन्तु युक्तः ।........ इत्यादि यत् तदप्यविदितपराभिप्रायस्य सर्वज्ञवादिनोऽभिधानम् । यतो नास्माकं 'अतीन्द्रियसर्वज्ञादिपदार्थबाधकं प्रत्यक्षादिप्रमाणं स्वतन्त्रं प्रवर्तते' इत्यभ्युपगमः, अतीन्द्रियेषु स्वतन्त्रस्य प्रत्यक्षादिप्रमाणस्य भवमिहितप्राप्तनदोषदुष्टत्वेन प्रवृत्त्यसम्भवात् । किंतु. प्रसंगसाधनाभिप्रायेण सर्वमेव सर्वज्ञप्रतिक्षेपप्रतिपादकं युक्तिजालमभिहितं यथार्थमभिधानमुद्वद्भिर्मी सिद्ध होगा, किंतु सर्वत्र सर्वदा सर्वपुरुषों में सर्वज्ञाभाव सिद्ध नहीं होगा। यह तो सिद्ध साधन हुआ यानी हमारी ही इष्टसिद्धि हुई क्योंकि कहीं पर किसी एक शेरी आदि में भटकते हुए पुरुषादि को हम भी सर्वज्ञ मानने के लिये तय्यार नहीं है । [ सर्वज्ञत्वाभावज्ञानरूप अन्यज्ञान से सर्वज्ञाभावसिद्धि अशक्य ] यदि तदन्यज्ञान' शब्द से, सर्वज्ञत्व से अन्य जो उसीका अभाव तद्विषयकज्ञान को लिया जाय तो यहाँ भी पूर्ववत् दो विकल्प हैं-१. ऐसा तदन्यज्ञान सर्वत्र सर्वदा कोई भी सर्वज्ञ नहीं है इस रूप में प्रवत्त मानते हैं या-२. कहीं पर कोई काल में कोई एक सर्वज्ञ नहीं है' इस रूप में ? प्रथम विकल्प युक्त नहीं है क्योंकि, जैसे देशविशेष का प्रत्यक्ष न होने पर तदाश्रित घटाभाव का प्रत्यक्ष नहीं होता उसी प्रकार सर्वदेशकालवर्ती सर्वपुरुष का प्रत्यक्ष न होने पर तदाश्रित सर्वज्ञत्व का अभाव भी नहीं जाना जा सकता। यदि किसी को सर्वदेशकालवर्ती पुरुषों का साक्षात्कार मान लिया जाय तब तो उसकी सर्वज्ञता सिद्ध हो जाने से उसका अभाव सिद्ध नहीं हो सकेगा। द्वितीय पक्ष भी अयुक्त है क्योंकि इसमें सर्वत्र सर्वदा सर्वपुरुषों में सर्वज्ञत्व का अभाव तो सिद्ध नहीं होता किंतु कहीं पर किसी काल में कोई एक पुरुष में सर्वज्ञता का अभाव सिद्ध होता है जिसमें हमारे इष्ट की सिद्धि होने से सिद्ध साधन दोष अनिवार्य है। सर्वज्ञवादी की ओर से की गयी उपरोक्त चर्चा का सार यह है कि 'सर्वज्ञ के विषय में पांचो प्रमाण निवर्तमान होने से सर्वज्ञ के अभाव का ज्ञान होता है' ऐसा जो प्रतिवादी का कहना है इसका पूरे जोर से प्रतीकार कर देने से अभावप्रमाण से भी सर्वज्ञ के अभाव का बोध आदर योग्य नहीं है। नास्तिक कहता है कि सर्वज्ञवादी का यह (अथ यथाऽस्माकं....से किया गया) पूरा प्रतिपादन हमारे अभिप्राय को विना समझे ही किया गया है । [सर्वज्ञवादी कथन की अयुक्तता का हेतु-नास्तिक ] नास्तिक कहता है कि-हम यह नहीं मानते हैं कि अतीन्द्रियसर्वनादिपदार्थ की सिद्धि में बाध करने वाले प्रत्यक्षादि प्रमाण की स्वतन्त्र रूप से प्रवृत्ति होती है। क्योंकि यह तो हम भी जानते हैं कि आपने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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