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________________ 122 :: तत्त्वार्थसार इस तरह ये धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य तथा काल द्रव्य, ये चारों द्रव्य ऐसे हैं कि जीवपुद्गल के सम्बन्ध से इनका सद्भाव जाना जाता है । जीव- पुद्गल न होते तो इन चारों का सिद्ध होना भी कठिन होता है। इन चारों की सिद्धि आगे खुलासा करेंगे। पुद्गलों का उपकार - पुद्गलानां शरीरं वाक् प्राणापानौ तथा मनः । उपकारः सुखं दुःखं जीवितं मरणं तथा ॥ 31 ॥ अर्थ - पुद्गल द्रव्य के उपयोग क्या हैं ? शरीर बनाना, वचन उत्पन्न होना, श्वासोच्छ्वास चलना, मन का होना एवं सुख, दुःख, जीवन, मरण - ये सब पुद्गल के कार्य हैं। यद्यपि जीव के सम्बन्ध से ये सब होते हैं तो भी उपादान कारण इन सब के लिए पुद्गल द्रव्य है। प्रथम चार के लिए पुद्गल उपादान व जीव निमित्त है, परन्तु सुखादि चार कार्यों के लिए जीव की मुख्यता है । तो भी वे पुद्गल सम्बन्ध के बिना नहीं हो सकते हैं, इसलिए वे भी पुद्गल के उपकार बताये गये हैं । जीवों का और काल का उपकार परस्परस्य जीवानामुपकारो निगद्यते उपकारस्तु कालस्य वर्तना परिकीर्तिता ॥ 32 ॥ अर्थ - जीव परस्पर में एक-दूसरे की सहायता करते हैं - यह उनका उपयोग है। काल का उपयोग वर्तना है, अर्थात् काल सभी वस्तुओं के परिणमन में सहयोगी होता है। परिणमन का नाम वर्तना है । धर्म द्रव्य का स्वरूप क्रिया परिणतानां यः स्वयमेव क्रियावताम् । आदधाति सहायत्वं स धर्मः परिगीयते ॥ 33 ॥ अर्थ – जो स्वयं गमन - सामर्थ्य युक्त हों और गमन करने लगे हों, उन्हें जो सहायता देता है या सहायता पहुँचाता है उसे 'धर्म द्रव्य' कहते हैं । धर्म द्रव्य का दृष्टान्त Jain Educationa International जीवानां पुद्गलानां च कर्तव्ये गत्युपग्रहे । जलवन् मत्स्यगमने धर्मः साधारणाश्रयः ॥ 34 ॥ अर्थ-गमन शक्तिवाले दो ही द्रव्य हैं, जीव और पुद्गल । इन दोनों द्रव्यों का जब-जब गमन होता है, तब-तब धर्म द्रव्य एक साधारण सहायक बन जाता है। जैसे मछलियों के चलने में जल सहायक होता है। प्रश्न – यहाँ धर्म द्रव्य को समझाने के लिए मछली और जल का ही दृष्टान्त क्यों दिया ? उत्तर— मछली जल के बिना नहीं रह सकती, मछली हजार फुट ऊपर से भी नीचे गिरनेवाले पानी के सहारे For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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