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________________ उ. अ. ३३ २८९ नाणावरणं पंच विहं सुयं आभि णिबोहियं । ओहिनाणंच तइयं मणनाणंच केवलं ॥ ४ ॥ निद्दा तहेव पयला निद्दानिद्दाय पयलपयलाय । तत्तोय थीणगिद्धीउ पंचमा होई नायव्या ॥ ५ ॥ चख्खु मचख्खु ओहिस्स दंसणे केवलेय आवरणे । एवंतु नव विगवं नायव्वं दंसणावरणं ॥ ६ ॥ [१] ज्ञानावरणीय कर्मना पांच भेद कह्या छे :- (१) श्रुत - ज्ञानावरणीय, [२] अभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय (मति ज्ञानावरणीय) (३) अवधि- ज्ञानावरणीय, [४] मन-पर्याय-ज्ञानावरणीय, [५] केवल-ज्ञानावरणीय. [४] [२] दर्शनावरणीय कर्मना नव भेद ह्या छे: - (१), निद्रा, (२) प्रचला, * १] निद्रा-निद्रा, (४) प्रचलाप्रचला, [५] थीणद्धि-निद्रा, १ (६) चक्षुदर्शनावरणीय, [७] अचक्षुदर्शनावरणीय, [4] अवधि-दर्शनावरणीय, (९) केवल-दर्शनावरणीय. [५-६]. *प्रो. जेकोबी आ पांच प्रकारनी निद्रानो जुदो जुदो अर्थ करे छे. जुदा जुदा ग्रन्थो तपासतां आ अर्थ नीकळे छे. निद्रा-जतर जगावी प्रचला - The slumber of a standing or sitting person उभां के बेठां झोकां आवी जाय छे. निद्रा निद्रा - Deep sleep जगाडतां घणी महेनत पड़े तेवी उघ. प्रचला प्रचला चालतां चालतां उंघ आवी जाय ते. मो जेकोबी ने High degree of activity पण खरो अर्थ तो Sleep of a person in motion थइ शके छे. १ चारे निद्रा करतां आ अति तीव्र छे. आ निद्रावस्थाए अर्ध वासुदेवनुं बळ होय छे. दिवस दरम्यान चितवेल कायें रात्रीए सुता पछी आ निद्रा वाळा उघमाने उघमा करे छे. बहुधा आ निद्रामां अनर्थज थाय छे तो पण हालमां एक सारुं काम थयानो दाखलो अमेरिकामा बन्यो छे. चोपान्याओमी लखाण करनार एक लेखकने सवारमा एक चोपान्याना तंत्री तरफथी बेन्कनो चेक मळ्यो 1. के. तमारां फलाणां लखाण माटे आ बदलो मोकल्यो छे, लेखके विचार कर्यो के आ लेख में लख्योज नथी ने मोकल्यो पण नथी. पोरे भोजन लइ निरांते आळोटतां याद आव्युं के चार दिवस पेहेलां आवो विषय लखवा तेनी इच्छा हती. स्मरण शक्तिनी सा - ह्या तांबट सिद्धथयुं के ते दीवसे रात्रीना वार वागते लेखक उधमांने उघमां उठ्यो हतो. बती सळगावी लखवानां साधन raai कर्या, लख्युं अने जाते पोष्ट ओफीसमां नांखी आवी सूइ गयो.त्रण दिवस वीती गया अने आ पत्र आव्यो त्यारे भान थयुं. आ प्रमाणे उघमाने उघमां अर्धी रात्रीए रस्ता वच्चे चाल्या जतां घणां माणसो पोलीसने मळे छे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003693
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMehta Mohanlal Damodar
PublisherMehta Mohanlal Damodar
Publication Year
Total Pages352
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size20 MB
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