________________
( १९५ ) उई, जानोन्नयो होडे प्रत्यक्ष देवनशालानु संछन होडे मसवरा मनतर से, तसगुए। सुशियें होडे श्रवो अभियवरसे ॥ शाखांजडी हीघी होडे न्ने भुञ होय भनने, पांजडी हीधी होडे अथवा हीयतनने ॥ मनहु मनोर य होडे तो सवितुरत इले, तुन भुज हेजी होडे हुरजने हेन मिले। आनाडा डुंगर होडे हरिया नहीय घणी, शङति नहिं तेहनी होडे जाबुंतुन लाएगी उपाय सेवा होडे सुरवर डोडी डरे, लेने, नावे होडे तो भुञ दुःज हरेशान जति घर राति होडे नगनी भन्दा सहे, घए। सुं हुए।ये होडे देश वि योग सहे। पड़ा गिरजाशं ही डेराण ते दुरित हरे, वायडन्सम्हे होडेघ रियें चित्त जशाच॥ पछता
॥ अथ वन्नुंघर स्वाभिन्निस्तवन ॥
॥ हेशी जिंहसीनी ॥ शंज संछन वलंधर स्वामी, माता सरसतीसु त शिवगामी होलावें लविवंद्ये॥ नरनाथ पहभरथ लयो, विन्यावती | वित्त सुहायो होलाणाशा जंड घातडी पछिम लागें, प्रलु घरम घुरंधरन्नगे होलानावछ विग्यमांनयरी सुसीमा, तिहां थापे धर्मनी सीमा होला
शाप्रलु भन जमे वसने, स्वपने पए। दुर्बल तेह हो।लानापा ज भभनन्ने प्रलुक्सशे, तो घर्मनी वेस पीएससी हो । लाणाआ स्वपने मल भुज निरजंतां, नमे पाभुं सुज हरजंतां हो लागाने स्वनरहित उड़ियां हेवा, तेहथी जमे अघि उहेवा हो । लाणानामीि भाशिङ उनउनी खेडी, राणी भरिद्धि रमशि लेडी हो । लागा प्रलु दर्शनना सुजनांगें, उहो जघि डेरें डोएा भागे होलाणापालु दूरथडी पए। लेट्या, तेएो प्रेभेदुःज सवि भेटया हो ।लाणारे श्री नय विनय सुशिष्य, मलुध्यानं रमेनि शीश होता लाणाड़॥ छति
॥ अथ यंहानन स्तवन ॥ ॥ माहुरी सहीरे समाएगी । जे देशी ॥
॥ नसिनापती विन्येंन्यारी, थंहानन डीपडारीरे ॥ सुखोचीनती
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Educationa International