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________________ श्रका पीठ जो, पामे रे ते मंगल माला माननी रे लो ॥ हारे मारे शिवपद कारण जावें जोग उकित जो, दीप कहे एम ए जे वात निदाननी रे लो। ॥५॥ इति ॥ ४॥ ॥अथ गहंली पंचोतेरमी॥ धोलनी देशीमां ॥राजगृही उद्यानमां, श्रीसोहम गणधार ॥ समोसरिया परिवारशें, मुनिजनना था धार ॥ १॥ चालो सखि गुरु वांदवा ॥ए आंकणी॥ पंच महाव्रत पालता, दशविध यतिधर्म सार ।। सत्तर नेदें संयम वस्या, वैयावच्च दश धार ॥ चा ॥२॥ गुप्ति धरे नववाडशु, झानादिक तप बार ॥ निग्रह क्रोध तणो करे, चरण सित्तरि शणगार । चा ॥३॥ पिंमविशुद्धि समिति धरे, जावना पडिमा बार ॥ ६ जियरोधक पमिलेहणा, गुप्ति अनिग्रहधार ॥ चा० ॥४॥ करण सित्तरी ए पालवे, टाले सकल कलेश॥ कमलासने बेसी कहे, जविजनने उपदेश । चा ॥ ५॥श्रेणिक नृपति मानशू, प्रणमी पट्टोधर राय॥ उचित अवग्रह ते साचवे, धर्म सुणे सुखदाय ॥ चाण ६॥ गुणवंती करे गहूंअली, चतुरा चेलणानार ॥ माणक मोती वधावती, जरती सुकृत नंमार ॥ चा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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