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________________ (ng ) जाये लीधे नाम, जग पडिबोहे रे ए त्रिहुं लोक नो नाथ, मुनि परिवार रे चउद सहस के संघात, सायर बोडी रे कोण सेवे बीलर पात्र || नवियण० ॥ १ ॥ राजगृही नयरी उद्यान, गुणशीला चैत्यके मेदान, याया पुंरिक प्रधान, सुर तिहां रचेरे स मवसरण तेणि वार, इंद्र इंद्राणी रे बंदे प्रजुने पार, आनंद पावे रे देखी प्रभुनो देदार ॥ जवि०॥ ॥ २ ॥ वननो पालक जेहनुं नाम, दीधी वधामणि जश्ने ताम, श्रेणिक हरख्यो सुणीने नाम, चलचित थीयो रे मगधपति माहाराज, परिवार संयुक्त रे साथै रमणी समाज, तिहांथी चाल्यो रे प्रजुने वं दन काज || जवि० ॥ ३ ॥ चतुरंगी सेना सजीय ज दार, गज रथ पायक अमुल तुखार, बहु जब उतर वाने पार, श्रेणिक हरखे रे वंदे प्रभुजीना पाय, प्रभु पद वंदी रे बेठो यथोचित वाय, तव उपदेसे रे वीर जिनेसर राय ॥ जवि ॥ ४ ॥ चेला राणी अति सोजागी, जिन वंदिने जक्ति जागी, गहूंली करवा रढ बहु लागी, कनक चोखा लइ रे हाथे तिही रसाल, गहूंली पूरे रे, जगपति या विशाल, मोतीडे वधावे रे टाले पाप प्रजाल ॥ जवि० ॥ ५ ॥ देशना दीधी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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