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________________ (- दश ) में पद निर्वाण | रूडी० ॥ ५ ॥ पटराणी श्रेणिकनी 'चेलणारे | आदरथी उठे धरीने प्यार, लेइ (सहस) सदीयो संगें सार ॥ रुडी० ॥ ६ ॥ सोवन जवथी स्वस्तिक पूरती रे || वांदी वधावे थइ उजमाल ॥ लु ausi aटके करे रसाल ॥ रुडी० ॥ ७ ॥ चतुरा जं सरती पाढे पगे रे ॥ जोती जिनमुखचंद अमंद, पामे मनमां परमानंद ॥ रूडी० ॥ ८ ॥ जिनवचनामृत सांजले रंगथी रे ॥ जक्ति पूर्वक चित्त मजार, धरती रथ सरूप विचार ॥ रुडी० ॥ ए ॥ इति ॥ ६८ ॥ ॥ अथ गहूंली उगणोतेरमी ॥ ॥ वीरजी या रे, गुणशील वनके मेदान ॥ विप्र पडिबोह्यो रे, केवलज्ञान प्रधान ॥ अरिहा तीन जगत के जाए, समवसरण तखतें महेराण, ऊलके जामंग गुणखाण, श्रेणिक दरख्यो रे यो वंदन काज, चतुरंगी फोजां रे वांकडीया करी साज, साथै तरुणी रे पंचसयाको समाज ॥ वी० ॥ १ ॥ धर्म प्रकाशे बारे परखदा मांहे, मजकुर पूबे गोयम उत्साहे, च अनुयोगें उत्तर सोहाय, श्रेणिक पूढे रे बेशी यथोचित वाय, वाणी निसुणी रे मनमां हर्षित थाय, संशय टाले रे आत्म अनंत सुख थाय ॥ वी० ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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