SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४४ ) ० ॥ ६ ॥ चूनडी उढिनें संचस्यां रे, जातां जिन द रवार रे || रंगीली ॥ माएकमुनियें कोडथी रे, गाई ए चूनडी सार रे || रंगीली || ||७ ॥ इति० ॥ ३४ ॥ ॥ अथ गहूंली पांत्रिशमी ॥ ॥ सारा जोगी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीगुरुपद पंकजनी सेवा, लागी बे मुऊ मन दे वा रे || गुरुजी उपकारी ॥ ए यांकणी ॥ गुरु गुण दरीयो सुपरें जरियो, मुजथी किम जाये तरियो रे ॥ गु० ॥ १ ॥ पांच ज्ञानमांहे उपकारी, ए श्रुतनी बलि हारी रे ॥ गु० ॥ असंख्य जीवना जव सुविलासें, संख्याता जव प्रकासे रे ॥ गु० ॥ २ ॥ लोकना जाव ते ज्ञानथी कहीयें, सदगुरु मुखश्री लहीयें रे ॥ गु० ॥ दर्शन सहित ज्ञान ते जासे, दर्शन मोहनी नासे रे गु० ॥ ३ ॥ विघटे मिथ्यात्व तम केरो, टाले ते जवनो फेरो रे ॥ गु० ॥ समकित विण संजम नहिं रचना, आगम मांहे बे वचना रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ सम कित सहित करे जे किरिया, ते जवसमुद्रयी तरि या रे || गु० ॥ एवी वाणी सोहम केरी, नासे कर्म जो वैरी रे ॥ गुण ॥ ५ ॥ सोहम पाट परंपर राजे, विजयदेवेंद्र सूरि गाजे रे || गु० ॥ स्वस्तिक पूरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy