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________________ (३५) ॥माण ॥ ॥ काग गहुँनी लापशी रे, मांहे माल वायो गोल ||मा॥ जाजे घीय लसलसी लापशी रे, गोत्रज पागल नैवेद्य कराय॥ मा ॥ १०॥ कुंवरनी माता एम नणे रे, कुंवरजी अविचल राज ॥ मा । सोवन पालणीये पोढाडीया रे, नीबुडां वस्त्र उंडगड ॥ मा ॥ ११ ॥ इति ॥ २५॥ ॥अथ गहूली बबीशमी ॥ ॥सरसति सामीने दिल धरी रे, वांडं गुरुने उत्साह॥ कमल पोयण सम लोयणी रे, कामिनी कंचनवान ॥ चमर ढलावो जिणंद प्रनु वीरने रे ॥ए आंकणी॥१॥ कंकण नेउर खलकती रे, ललकती को किलवान ॥ग जगति चालझुंचालती रे, मलपती सहियर साथ ॥ च॥२॥ कनक कचोलां कुंकुम जरी रे, थाल मु क्ताफल सार ॥ चरम प्रजुजीने वांदवा रे, शोल स जी शणगार ।। च० ॥३॥प्रह नगमतानी गहूंअली रे, वाजे वीणा सार ॥ चेलणा काढे डे गहंअली रे, श्रेणिकनी घरनार ॥ च॥४॥ मोतीनों पूस्यो डे साथियो रे, ग्वीयां पांच रतन्न ॥ चेलणा वधावे ठे मोतियें रे, देशना दिये जगवन्न ॥ च ॥५॥ पाट पीउ प्रनु पानले रे, गाती रंगें रे साज ॥ सोवन सूर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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