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________________ (२१) ज, दास उपर दया करो | जी० ॥ जीरे० ॥ महेर करो में हेरबान, अमृत वचनें सींचिये ॥ जी ॥२॥ जीरे ॥ सु वासूत्र सिद्धांत, हेजें हियमुं गढ़गढ़े ॥ जी ॥ जीरे|| जिम मोरा मन मेह, सीताने मनें रामजी ॥ जी ॥३॥ ॥ जीरे० ॥ कमला मन गोवींद, पारवती इश्वर जपे ।। जी० ॥ जीरे० ॥ तिम मुऊ हृदय मकार जिनवाणी रूचे घणी ॥ जी० ॥ ४ ॥ जीरे० ॥ नयगम जंग निक्षेप, सुतां समकित संपजे ॥ जी० ॥ जीरे० ॥ उत्पाद व्यय ध्रुव रूप, स्याद्वाद रचना घणी ॥ जी० ॥ ५ ॥ . जीरे० ॥ नवतत्त्व ने षट् द्रव्य, चार निक्षेप सप्तनयें करी || जी० ॥ जीरे० ॥ निश्चय ने व्यवहार, इणि परें मुऊ उलखावियें || जी० ॥ ६ ॥ जीरे ॥ कृपा क रो गुरुराज, ते सुगवा इष्ठा घणी ॥ जी० ॥ जीरे० ॥ निज परसत्ता रूप, जासे ते सुणतां थकां ||जीना ॥ जीरे०॥ जिन उत्तम माहाराज, तस पदपद्म सेवे सदा ॥ जी० ॥ जीरे० ॥ प्रगटे आत्मस्वरूप, अजय अर एणी परें जणे ॥ जीरेजी ॥ ॥ इति ॥ १२ ॥ ॥ अथ गहूंली तेरमी ॥ ॥ आबे लालनी देशी ॥ नेयरी राजगृही सार, लोक बसेरे अपार || ठे जाल ॥ जंबुस्वामी समोसल्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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