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________________ (१५) नित्य उबरंग रे॥ श्रीजिनाणा पाखे श्रहो निश, मुक्तिपद पामे विशेष रे ॥चा ॥ ॥ इति ॥६॥ ॥अथ श्री गहूंली सातमी ॥ ॥जात्रीडा जात्रा नवाणुं करीये रे । ए देशी॥ ॥सखी सरस्वती जगवती माता रे, कां प्रणमीजें सुख शाता रे, कां वचन सुधारस दाता गुणवंता सांजलो वीर वाणी रे, कांश मोद तणी निशाणी। गु०॥१॥ए आंकणी ॥ कांश चोवीशमा जिन रा या रे, साथे चौद सहस मुनिराया रे, जेहना सेवे सुर नर पाया ॥ गु० ॥ कां० ॥२ ॥ सखी चतुरंग फोजा साथ रे, सखि आव्या श्रेणिक नर नाथ रे, प्रनु वंदीने हुआ सनाथ ॥ गु०॥कां ॥३॥ बहु सखि संयुत राणी रे, आवी चेलणा गुणखाणी रे, एतो नामंगलमां उजाणी ॥ गु० ॥ कां ॥४॥ करे सा थीयोमोहनवेलरे, कांश प्रजुने वधावे रंगरेलरे, कांश धोवा कर्मना मेल ॥ गु० ॥ कां० ॥५॥ बारे पर्षदा नि सुणे वाणी रे, कांश अमृतरस सम जाणी रे, कांश वरवा मुक्ति पटराणी ॥ गु०॥ कां ॥ ६॥ इति ॥७॥ ॥अथ श्री गहूंली आठमी॥ ॥आ जो रे बार आ जो रे, सोनागी गुरुनां पगलां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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