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________________ (१३५) अथ ॥ अचलगष्ठपति पूज्य जहारक श्री विवेक सागर सुरिनी गहूंली एकशो ने सत्तरमी ॥ || रंग रसिया रंगरस बन्यो । मनमोहनजी ॥ ए देश । ॥ ॥ श्री सरसति पद प्रण मियें || गुरु सुखकारी ॥ गा यशुं गछपति राय ॥ मनडुं मोह्यं रे गुरु सुखकारी ॥ ॥ ए की || शासनदेवी पसायथी ॥ गु० ॥ सेव तां सवि सुख थाय ॥ म० ॥ गुण ॥ १ ॥ अचल गठ पति जाणियें ॥ गुण ॥ श्री रत्नसागर सूरिराय ॥ म० ॥ ॥ गु० ॥ तास पटोधर दीपता ॥ गु० ॥ श्री विवे कसागर सूरि राय ॥ म० ॥ गु० ॥ २ ॥ कनदेश सोहामणो ॥ गु० ॥ लघु आसं बियो मन जाण ॥ म० ॥ गु० ॥ गोत्रदेवया दीपता ॥ गु० ॥ कुलवृ ॐ सवंश वखाए ॥ म० ॥ गु० ॥ ३ ॥ टोकरसी सु त शोजता || गु० ॥ जननी कुंता बाइ मात ॥ म० ॥ गु० ॥ वंशविभूषण जाणी यें ॥ गु० ॥ नाम विवेक सिंधु विख्यात ॥ म० ॥ गु० ॥ ४ ॥ मांडवी बंदर मनोहरु | गु० ॥ श्री संघने प्रतिघणो प्यार ॥ म० ॥ गु० ॥ संघ चतुर्विध मली करी ॥ गु० ॥ करे पा ट महोत्सव सार ॥ म० ॥ गु० ॥ ५ ॥ संवत जंग पीश अवावीशें ॥ गु० ॥ कार्त्तिक वदि पंचम धार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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