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________________ (११) फल उपरें जी॥६॥ मगधाधिपनी नारी, शोल स जी शणगार ॥ गण॥ ललि ललि करती खूबणां जी ॥७॥ जोती गुरुमुख चंद, पामती परमानंद ।। ग॥ चतुर चकोरडी गोरडी जी ॥७॥ सुरवधू नरवधू को डि, मलि मलि सरखी जोडि ॥ गण॥ गावे जिनशा सन धणी जी॥ ए॥ इति ॥ १॥३॥ ॥अथ गहूंली एकशो ने चारमी॥ ॥पंचम पदने गाये रे ॥ ए देशी॥ ॥ श्रुतनाणी श्रुतधर गुरु रे, पंचावना त्यागी रे ॥ दशत्रिक वेत्ता नाव समेता, संवर तप सोनागी॥ धन गुरु वंदो रे ॥ वंदो रे जगत हितकारी ॥ धन०॥ ॥ए श्रांकणी ॥१॥ जीवानिगम ए सूत्रजमांहे, जीवाजीव विचार रे॥ग फु ति चउ पण विहा, जूजूश्रा नेद उदार ॥ धन ॥२॥ शशी रवि ग्रह नक्षत्र तारा, जंबु लवणे बमणा रे ॥ धाश्य त्रिगुणा नणजो सघले, चनदिशि फरे परित्नमणा ॥ धन ॥३॥ ऋण परें देशना दिये गुरु नाणी, पुण्य पाप जेलखाणी रे ॥ श्रझा जासन तत्वरमा अनुभव नाणी ॥धन ॥४॥ श्रझावंत सुश्राविका रे, निसुणी श्रीजिनवाणी रे ॥ सन्मुख जोती अक्षत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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