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________________ (११५) त जांऊर बे चरणे, घूघरीयें घमकार ॥ जो० ॥ अ० ॥ ५ ॥ नाके मोती उज्ज्वल वाने, बाजुबंध बेहु बांदे रे । केडे कटि मेखला रणजगती, ऊलके हीरा मांहे ॥ जो० ॥ ० ॥ ६ ॥ देश देशना न्हाना महोटा, सं घ लइ संघवी यावे रे ॥ ते सहु पहेलां श्रीफल चून डी, जगजननीने चढावे ॥ जो० ॥ ० ॥ ७ ॥ धन्य धन्य ए श्री पुंकर गिरि जिहां, जगदंबानो वास रे । जे कोइ ए तीरथने सेवे, तेहनी पूरे यश ॥ जो० ॥ ॥ ८ ॥ संघवी संघतणी रखवाली, श्री जिन सेवा कारी रे || दीपविजय कदे मांगलिक करजो, बे बहु शोजा तारी ॥ जो० ॥ श्र० ॥ ए ॥ इति ॥ एए ॥ ॥ अथ गहूंली शोमी ॥ ॥ शाम लिया शामजी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ ज्ञानगुणें वरया रे, अरिहा अजित जिणंद जग वान || श्रावी समोसख्या रे, नयरी साकेतन उद्या न ॥ साधें पटोधरा रे, सिंहसेनादिक वर गणधार ॥ एक लाख मुनिवरा रे, ज्ञान क्रियाना जे जंमार ॥१॥ रूपक धारोहिने रे, मुनि गुणठाणे वधता जाय ॥ वर निरमोहीने रे, केश मुनि घाती करम खपाय ॥ केश परिपाटी यें रे, डुक्कर तप अजिग्रह करनार ॥ 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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