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________________ (३७) मतवेदा ब्रह्मपद ध्यावत, निश्चय पख उरधारी ॥ मी मांसक तो कर्म बंधते, उदय नाव अनुसारी ॥ मा० ॥२॥ कहत बौध ते बुद्ध देव मम, दणिक रूप दर सावे ॥ नैयायिक नय वाद ग्रही ते, करता कोउ रावे ॥मा ॥३॥ चार्वाक निजमनःकल्पना, शून्य वाद कोउ गणे ॥ तिनमें नये अनेक नेद ते, अप पी अपणी ताणे॥ मा० ॥४॥ नय सरवंग साधना जामें, ते सरवंग कहावे ॥ चिदानंद ऐसा जिन मा रग, खोजी होय सो पावे ॥मा ॥५॥ पद पांचमुं ॥ जाग अविलोक निज शुभता स्वरू पकी ॥ ए आंकणी ॥ जामें रूप रेख नांही, रंच पर पर गंही, धारे नही ममता, सुगुण जव कूपकी ॥ जा ॥१॥ जाकी हे अनंत ज्योत, कबहुं न मंद होत, चार ज्ञान ताके सोत, उपमा अनुपकी ॥ जाण ॥२॥ उलट पुलट ध्रुव, सत्तामें बिराजमान, शोना नहि कहि जात, चिदानंदपकी ॥ जा ॥३॥ ___ पद बहुं ॥ राग प्रजाती ॥ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग लागो रे॥ए आंकणी॥तप जप संजम दानादिक सहु, गिणती एक न आवे रे ॥ जियसुखमें ज्योलो ए मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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