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________________ ५३ तृतीयाष्टक. घणां पुष्पोथी पूजन करवू.” वली ते देवपूजनमां आठ पुष्पो लेवानुं कारण पण कदेशे. वली ते अष्टपुष्पी पूजा, जीवादिक तत्वोने परमार्थ वृत्तिथी जाणनाराजए बे प्रकारनी कहेली बे. ते बे प्रकारनी कई? तो के, एक सावद्य तथा बीजी निरवद्य. अहीं "इतर” शब्दने जे पुंवन्नाव मे ते “ वृत्तिमात्रे सर्वादीनां पुंवनावः ” एवी रीतना व्याकरणना वचनथी थएलो . हवे ते पूजानुं फल देखाडे . पेहेली (सावद्य) पूजा स्वर्गने देनारी ने, तथा बीजी (निरवद्य ) पूजा मोक्ने देनारी बे. हवे बे श्लोकोश्री अशुद्ध पूजानुं स्वरूप कहे जे. शुभागमैर्यथालानं, प्रत्यौः शुचिनाजनैः ॥ स्तोकैर्वा बहुभिर्वा पि, पुष्पैर्जात्यादिसंजवैः॥२॥ अष्टापायविनिर्मुक्त, स्तबगुणनूतये ॥ दीयते देवदेवाय, या सा शुक्रेत्युदाहृता ॥३॥ अर्थ-श्राप कर्मोरूपी अपायथी मुक्त भएला, अने तेथी उउत्पन्न चे गुणोनी संपदा जेने, एवा देवाधिदेवप्रते, जेम लाल थाय, तेवी रीते शुधने प्राप्ति जेनी, तथा नहीं कमलाएलां, अने पवित्र नाजनमा रहेला, एवां मालती आदिक उत्तम जातिनां थोडांअथवा घणां पुष्पोएं करीने जे पूजा करायचे ते पूजाने “सावद्य पूजा" कहेली . ___टीकानो नावार्थ-शुध केतां निर्दोष , मेलववानो उपाय जेनो एवां पुष्पो, अर्थात् न्यायोपार्जित धनथी, अने चोरीविना ग्रहण करेलां, एवां पुष्पोएं करीने जे पूजा देवप्रते देवाय (कराय ) नेने अशुद्ध पूजा कहेली बे, हवे ते पूजा केम करवी ? ते कहे जे. जेमां लान- उबंधन न श्राय, एवी रीते शासननी प्रत्नावना माटे, उदार नावथी मालीपासेथी देशकालनी अपेहाए उत्तम, मध्यम, तथा जघन्य जातिमांथी जे पुष्पो मले, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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