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________________ प्रथमाष्टक. २ शास्त्रने मनुष्यनी कृतिविना थएलुं जे माने बे, तेज कहे बेके, तस्मिन् ध्यानसमापन्ने, चिंतारत्नवदास्थिते ॥ निःसरंति यथाकामं, कुड्यादिभ्योऽपि देशना: १ अर्थ - ते ध्यान प्राप्त ये बते, तथा तेमां चिंतामणि - लनी पेठे आस्था राखवाथी, इवा प्रमाणे जींत यादिकमांथी प उपदेशो निकले a. एवी रीतना उपदेशने माननाराउंना मतनुं खंडन एवी रीते थाय वे के, एवी रीते जींत यादिकमांथी निकलेलो उपदेश स पुरुषे कहेलो मनाय नहीं; अने तेथी तेमां ( लोकोनो ) विश्वास पण न थाय, केम के, ते उपदेश को बनाव्यो ? ( ते नक्की अइ शकतुं नथी.) जोके ते अन्य दर्शनीनां देवने चिंत्य पुष्यनां समूहें करीने घणां अतिशयो वे, तो पण (मुखथी) बोलवापणामां कई विरोध तो नथी, तो बोलवाणानो व्याघात करनारी एवी जीत - दिकनी देशना कल्पवानी शी जरुर हती ? माटे जे शास्त्र प्राप्त पुरुषे कहेतुं होय, तेज शास्त्र मोहना मार्गरुप बे; ने एम कहेवाथी जे शास्त्रानो करनार, कोइ पुरुष न होय, ते शास्त्र देवाय केम के एवां अपौरुषेय शास्त्रो बनवां पण तेनो असंव नीचे प्रमाणे जाणवो. जे जे वचननी रचना बे, ते ते “कुमारसंभव” यदिकनी पेठे (कालिदासादि) पुरुषनी बनावेली देखाय बे; एवी रीते वेद पण वचनोनी रचनावालो ने, माटे तेने पण कोइ पुरुषेज बनावेलो कही शकाय अने तेथी तालु ादिकना व्यापारवाला पुरुषना वचन रूप एवा वेदने “ अपौरुषेय " एटले पुरुषे नहीं बनावेला कहेवा, ए युक्त बे. कधुं बे के, Jain Educationa International प्रमाण कसंजवित बे; For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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