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________________ १२६ श्री हरिमसूरिकृतान्यष्टकानि । र्थिनो घणो प्रचार न होय, तेवो देश जोवो; " काल " एटले 5काल श्रादिक ज्यां काल न होय, ते; तेम राजा आदिको पण ज्यां मध्यस्थ तथा डाह्या होय, तथा प्रतिवादी पण ज्यां वादने योग्य होय, तथा पोते पण वाद करवाने समर्थ ने के, नहीं ? इत्यादिकनी अपेक्षायें करीने वाद करवो. कां ने के, कः कालः कानि मित्राणि, को देशः कौव्ययागमौ ॥ काहं काच मे शक्ति, रिति चिंत्यं मुहुर्मुहुः ॥ १ ॥ अर्थ-कयो काल बे ? कोण मित्रो बे ? कयो देश बे ? शं आवक जावक बे ? हुं कोण बुं ? तथा मारी शक्ति केटली बे ? एवी रीते वारंवार चिंतववुं. वीएवी रीतना अमुक देशादिकने विषे वाद करवायी मारी तथा शासननी गौरवता थशे, तथा अमुक देशादिकोने विषे वाद करवाथी लघुता थशे; एवी रीतनो विचार करीनेज जेथी गौरवता वधे, तेवी रीतनो वाद करवो. वली ते वाद शुं विचारिने करवो? तो के, जेम जगवान श्री वीरप्रजुए प्रथम समवसरणमां मलेली व्योनी पर्षदाने तजीने, बीजी जगोए उत्तम देशना आपी, तेम, विधान माणसे पण अनुचित एवा देशादिकने, तथा पोताना छाने परना उपकारना जावने वर्जि ने, बीजी जगोए उपर कहेलो णे प्रकारनो वाद करवो. एव ते बारमा अष्टकनुं विवरण समाप्त ययुं. त्रयोदशमाष्टकं प्रारज्यते. एवी रीते उपर वादोनुं स्वरूप कंधु, हवे ते मांहेलो धर्मघादज मुख्य वृत्तिश्री करवो; एवा हेतुथी ते विषयने देखाडता का कहे बे. विषयो धर्मवादस्य, तत्तत्तंत्रव्यपेक्षया ॥ प्रस्तुतार्थोपयोग्येव, धर्मसाधनलक्षणः ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003686
Book TitleHaribhadrasuri krutanyashtakani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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