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________________ ७३ नाषान्तर सहित. अंजनाने रहेवा सारु तेणे सात मजलानो रमणिय महेल श्राप्यो. पवनंजये घेर श्राव्या पड़ी अंजनाना सामुं पण जोयुं नहीं. तेने परिहरीने बीलकुल बोलावे पण नहीं, वात पण नहीं आने कोई पण प्रकारनो संबंध पण नहीं. अंजना महा शोकसागरमां पनी जई विचारवा लागी के, जवांतरनां जे कर्म ते मुजने श्रा समये श्रावीने नड्यां जणाय जे. एम मन साथे घणी विमासण करती पोतानुं सीलव्रत साचवती दीवस कहाडवा लागी... एक वखत रावणे पोताना शत्रु पाताललंकानाखामी वरुणराजाने जीतवा सारु प्रल्हादराजाने कहेवगाव्यु के सैन्य देईने श्रावज्यो. रावणनी श्राज्ञापालक प्रल्हादराजाए जवानी तैयारी करवा मांमी, त्यारे पवनंजये कह्यु के, पिताजी! ए कार्य करवानी मने आज्ञा आपो. हुं रावणनी साह्य करवा माटे जश्ने वरुणने जीती टुंक समयमा पाडो श्रावीश. प्रल्हादराजाए पवनंजयने योग्य जाणी रावणनी मददे जवानी आज्ञा आपी. सर्व सैन्य सजा करी, जवानी वखते पवनंजय पोतानी माताने पगे लागवा माटे घेर श्राव्यो. पोतानो पति परदेश लडाई उपर जवानो डे एवं सांजलीने तत्काल अंजनासुंदरी, जे माल उपर हती त्यांथी नीचे उत्तरी श्रावीने पुतलीनी माफक बारणाना थांजलाने अंग टेकीने उनी रही, एवा इरादाथी के आज तो ए मने जरुर बोलावशे. पवनंजय तो पोतानी माताने नमस्कारादि करी, अंजनाने बोलाववानुं तो बाजु पर रह्यं परंतु तेना सामे तिरस्कार युक्त दृष्टीए निहाली चालवा लाग्यो. ते वखते अंजना तेनी पासे श्रावी, तेना पगमां मस्तक मुकी, बे हाथ जोमी विनती करवा लागी के, हे प्राणनाथ ! श्राप सर्व लोकनी साथे बोल्या तथा मख्या, तथापि महारा साथे लगार पण न बोलवानुं कारण शुंने ? हुँ नीरपराधी बु. महारी एक अर्जध्यानमांखेशो? ते ए के, मने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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