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________________ ६ सूक्तमुक्तावलीधर्मवर्ग श्राप चक्रसहित एवी रीते मुकावी के चक्रना मध्यनागे थईनेज त्यां बाण जई शके; हेवल तेल नर्यो लोह कढाह मुकाव्यो. राजकन्या पांचवर्णा फूलनी माला वेश्ने ते मंडपनी एक बाजुए सखीयो सहवर्तमान आवीने उनी रही. राजाना बावीसे पुत्रो हाथमां धनुष्य बाण लेश्ने राधानो वेध करवा माटे श्राव्या. राजा तथा राजवर्गादि पुरजनो स्वयंवर मंडपमा योग्य आसनपर श्रावीने बेग. राधावेध साधवानी शरुआत थई. तेमा केटलाक कुमारनां बाण एक चक्रने, कोईकनां बे चक्रने, कोईकनां त्रण चक्रने, कोईकनां चार चक्रने, कोकनां पांच चक्रने अने कोईकनां न चक्रने (बाण) नेदी गया. पण सोले चक्र सरखां श्रावतां कोई पण बाण साधी शक्युं नहीं तेथी सर्वे विलखा थया. पूर्वे साध्या नथी तेमज एवा नाग्यवंत नथी तेथी बावीसे निफल थवाने लीधे राजा इंदत्त पण विमासणमां पमी विचार करवा लाग्यो के, महारा पुत्रनी प्रसंशा सांजली ए कन्या अहीं श्रावी. पण राधावेध सधायो नही, तेथी आवेली कन्या जशे श्रने पुनीयामां हांसी थशे ते तो जूदी! एम विलखो थई राजा विचारशून्य जेवो बेगो हतो तेने जोई प्रधाने कर्वा के, महाराजा ! शी फीकर करो डो? हजी तमारो एक पुत्र , ते राधावेध साधशे एवी मारी खात्री बे. राजाये कह्यु-ते कीयो ? प्रधाने पोताने घेर राजा रह्यो हतो ते वात कहीने राखेली नोंधनो कागल वंचाव्यो. राजानी शंका मटी गई. तरतज सुरेंजदत्तने बोलाव्यो. सुरेंजदत्ते धनुष्य बाण सहित राजानी पासे आवी सविनय नमस्कारादि करी आज्ञा मलतां राधावेध साधवाने बाण ताक्युं नीचे मुकेली तेलथी जरेली कढाश्मां अधो मुख करी तेमां पडता थंन उपर मुकेली राधा नामनी पुतलीना प्रतिबिंबने नीहाली उपर फरता उलटा सुलटा श्राडा अवला सोले चक्र सरखां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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