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________________ ६२ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग तुं संपूर्ण सुखी या. ब्राह्मण बोल्यो के, महाराज ! श्रमने तमे एटलुं पावो, मारे बीजुं कांई जोईतुं नथी. चक्रवर्त्तिए तेना माग्या मुजब " सघला पोताना राज्य ( बए खंड ) मां वाराफरती दररोज एमने ईछानुसार जोजन जमाडे ने उपर एक सोना महोर दक्षणा आपे,” एवो परवानो करी थाप्यो. ब्रा ह्मण ए प्रमाणे दररोज जमवा लाग्यो, पण ज्यां एक वखत जम्यो त्यां बीजी वखत जमवानो वारो श्राव्यो नहीं; केमके चक्रवर्त्तिनी एक लाख बाणु हजार स्त्रीउना तेटलाज जूदा जूदा चला बे, पछी बोहोतेर हजार नगर, अमतालीस हजार पाटण, वली वीजा खेडा, कर्बट, मंगप, द्रोण विगेरेना अनेक चूला बे. एटले ठेकाणे वारे वारे जमतां कदापि पार न आवे, तो फरीने बीजी वार चक्रवर्त्तिने चूले जमवानो वारो तो क्यांथीज वे ? न जावे. तेमज मनुष्यजव पामी घालसे करी खुए तो फरीने ते जव पामवो दुर्लन जावो. वली ते काले उत्कृष्ट सात वर्षनुं श्रजखानुं प्रमाण हतुं तेना बे लाख बावन हजार दीवस या तेथी पण स्पष्ट समजाय बे के जे घेर जम्यो ते घेर फरीथी जमवानो वारो आवे ज नहीं, तेम बतां कदापि कोई देवताने जोगे तेनी साहाज्ये करी ब्राह्मण घणा रूप करे तेथ ते पण कदाच (देवानुयोगे) पामे अर्थात् फरीथी जमवानो वारो आवे ! परंतु मनुष्यजव पामी धर्म साधन कर्या विना एटले अवतार गुमायो तो फरी मनुष्य जव पामवो अति दुर्लन बे. माटे धर्म सेवन करी मनुष्यजव सफल करवो. ब्राह्मण मेलवेला परवाना प्रमाणे जम्यो ए चूले फरी जमवानो वारो वे नहीं एम मनुष्यजव गुमावी दीधो ते फरी मलवो पुष्कर बे. ॥ मनुष्यजवनी दुर्लनता उपर बीजो पासानो दृष्टांत ॥ या जरतक्षेत्रने विषे गोलक देशमां चणीक नामे गाम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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