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________________ ६० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग हारी मेले ा दिशे जा, वस्ती श्रावशे एटले तुं सुखी थईश. एम कही ब्राह्मण जवा लाग्यो एटले ब्रह्मदत्ते कडं के, तमारो गुण नहीं विसरे तेवो , माटे तमे, ज्यारे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति थयानुं सांजलो त्यारे तुरत मारी पासे आवजो ! महारो कोल ! जो क्षत्रीपुत्र बुं तो तमारी ईछा पूरीश. श्रावां वचन सांजली ब्राह्मणे विचार्यु जे, एवा कंगाल घणाए फरे ! पण ठीक ! सीधो जवाब देवामां कोई जतुं नथी. पडी ब्रह्मदत्त प्रत्ये कह्यु के, वारु माहराज ! तमारी ईछा अस्तु हो. एम सीर्वाद देई ब्राह्मण चालतो थयो. ब्रह्मदत्त पण त्यांथी ब्राह्मणे बतावेला मार्गे चाली नीकल्यो. त्यारपडी गाम, नगर, पुर, पाटण विगेरे स्थलोए फरतां फरतां सो वर्ष वीती गयां, तेमां राजा तथा विद्याधरा दिनी एक लाख बाणु हजार कन्या परएयो; अने उ खंग पृथ्वीनुं राज्य संपादन करी चक्रवर्ति पद पाम्यो. बन्नु क्रोड गाम, बोहोत्तेर हजार मोटां नगर, अमतालीस हजार पाटण, केटलांएक खेडा, केटलाएक करबट, मंमप, प्रोण प्रमुख नवनिधान, चौदे रत्न मेलवी, उन्नु क्रोम पायदल, चोरासी लाख हाथी, चोरासी लाख घोडा, चोरासी लाख रथ, तथा एक लाख बाणु हजार स्त्रीउना परिवारे परवों थको पचीश हजार देवता जेनी सेवामा रहे बे एवो ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति कंपीलपुर नगरे श्राव्यो. दीर्घराजाने लांबी जंघमांहे नाख्यो अर्थात् कालधर्म पमाड्यो. चूलणीए नयने लीधे नासी जई दिदा लीधी श्रने शुद्ध संयम पाली कर्म खपावी तेज नवने विषे मोदपद पामी. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति सुखरुप राज्य वैनव जोगवे . धनु, प्रधानपदवी जोगवतो राज्य वहीवट चलावे . तेउनी बाण मात्र कोई लोपतुं नथी. हवे जे ब्राह्मण साथे ब्रह्मदत्ते अडतालीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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