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________________ 4G सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग चाल्या जज्यो. ब्रह्मदत्तनी वहु थई श्रावेली स्त्रीने बाहार काढवा माटे खोटी थई तमारो वखत गुमावशो नहीं. पाणीग्रहण करी ब्रह्मदत्त स्त्रीसहित पोताना नगरमां थाव्यो. चूली राणीए तेने लाक्षागृहमां सूवा मोकल्यो. प्रधानपुत्र धनु तेनी साथे शयनगृहमां गयो. ब्रह्मदत्ते तेने घेर जवा माटे घणो आग्रह कर्यो; त्यारे तेणे कयुं के, हुं तमारो खीज - मतगार सेवक तूं माटे तमारा पांगेठ देठे सुई रहीश, पण थापने वीला मुकी क्षण मात्र पण दूर नहीं जाउं श्र प्रमाणे क ही धनु तेनी पासे त्यांज रह्यो. कणयर राजाए, प्रधाननी सूचना मुजब पोतानी पुत्रीने बदले तेनो स्वांग पहेरावी दासीने मोकली हती, ते स्त्री सूवा माटे आवासमां घ्यावी. ब्रह्मदत्त अने धनु वार्तालाप करवा लाग्या ने स्त्री निद्रावश थई म - ध्य रात्रि थया पढी चूतणी सर्व लोकने निद्राधीन थयेला जोई अवसर साधी एकली लाखना मंदिरे यावी ने पोताने हा मुक्यो. जरा सलग्युं एटले त्यांथी नासती नासती पोकार करवा लागी के, अरे ! धायो रे धायो !! महारो ब्रह्मदत्त पुत्रलाखना मंदिरमां सुवा गयो हतो, ए घर तो सलगतुं देखाय बे ! मारा पुत्रनुं शुं ययुं ? महारो रत्न सरिखो पुत्र अग्निमां बले वे तेने तमे काढो, एम लोकोप्रत्ये कहेवा लागी. लाक्षागृह बलवा मांड्यं, अग्नि चारे बाजु फेलायो ने जडका क्षणवारमां दावानलनी माफक एटला तो वध गया के त्यां आगल जवानी कोईनी पण हाम चाली नहीं. ए मंदिरमां नि सलगतां तुरत धुणी गोटावाथी तथा नमनड जडका यता जोवाथी ब्रह्मदत्त एकदम पोताना मित्र धनुने कहेवा लाग्यो के, आशो अकस्मात् ? धनुए कह्युं के, महाराज ! ए वात महारा समजवामां बे. ब्रह्मदत्त कहे, हवे शुं करवुं ? धनुए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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