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________________ जाषान्तर सहित. ୨୯୯ जावार्थ:- था जरत क्षेत्र मध्येनी व खं पृथ्वी बोमीने जेणे मोक्षमार्ग साध्यो एवा सोलमा तीर्थंकर श्रीशांतिनाथ जगवान तथा गजसुकमाल छाने प्रत्येक बुद्ध जे जगतने विषे सुप्रसिद्ध अर्थात् घणा जाणीता वे तेर्ज बीजा अर्थ बंडी कढेतां त जीने मोक्षमार्गने विषे लुब्ध थया एटले मोक्ष मार्ग साध्यो, तेउने धन्य जाणवा. ॥ ३ ॥ ॥ अथ कर्म विषे ॥ करम नृपति कोपे डुःख आपे घणेरा, नरय तिरय केरा जन्म जन्मे नेरा ॥ शुभ परिणति होवे जीवने कर्म तेवे, सुरनरपति केरी संपदा सोइ देवे ॥ ४ ॥ जावार्थ:- कर्मरूप राजा कोपे वारे ए जीवने दुःखनी परंपरा प्रत्ये पे, शां दुःख आपे ? तो के- नर्कनां अने तियंचना जवो जवने विषे जूदां जूदां घणां जे दुःख कहेवाय बे, ते ए जीव पामे; अने एज जीव ज्यारे शुन परिणते परणमे एटले जीवनी शुभ परिणति थाय त्यारे ते देवपणानी तथा मनुष्यपणानी ( इंद्र अगर राजार्जुना जेवी ) संपदा प्रत्ये पामे. अर्थात् कर्मरूप राजा ज्यारे रीजे त्यारे सुख संपती आपे बे. ४ करम शशि कलंकी कर्म निक्षू पिनाकी, करम बलि नरेंश प्रार्थना विष्णुराकी ॥ करम वश विधाता इंद्र सूर्यादिहोई, सबल करम सोई कर्म जेवो न कोई ॥ ५ ॥ जावार्थ:- कर्म ते प्रधान तडुप मुख्य बे, कर्मे करी शशि जे चंद्रमा तेमां पण कलंक बे, वली कर्मे करी पिनाकी जीखारीपणुं पाम्यो, छाने कर्मे करी रांकपणे विष्णुए बलिराजानी प्रार्थना करी; ( वली आ चरणनो बीजो एवो जावार्थ पण नीकले " देवे " ने बदले " पावे "" बीजी प्रतमां १ Jain Educationa International शब्द वे. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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