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________________ ૧૫ भाषान्तर सहित. ने प्रतिबोध पमाडवाथी तेनो संशय दूर थयो अनेजैनधर्म उपर तेने संपूर्ण श्रद्धा थई. तेणे श्रावकनां बार व्रत उचर्या. त्यारपबी राजाए राज्यव्यना चार जाग कर्या. एक नाग नंमारनो १, बीजो नाग अंतेजरनो २, त्रीजो नाग दान पुन्यनो ३, अने चोथो जाग लश्करनो ४. श्रा प्रकारे धर्म पामी निश्चय करीने राजा जे चित्रसारथीनी साथे रयवामी जवानिकट्यो हतो ते पडतुं मुकी गुरुमहाराजनी पासेथी पाधरो घेर आव्यो.संसार उपर तेना परिणाम घणा खूखा थया. पोसा, पडिकमणां, सामायिकादि व्रत पञ्चखाण करवामां सावधानपणे रहेवा लाग्यो. गणधर महाराज अन्यत्र स्थानके विहार करी गया. हवे राजा विषय उपरथी पण मुळ उतारी संसारमा रह्या बता विरक्तपणे वर्तवा लाग्यो. पहेलो पोतानी सूरिकांता स्त्री उपर तेने घणो प्यार हतो ते पण मटी गयो. सूरिकांताए पोताना प्रितमनो प्यार तेणीना उपर नथी अने हवे ते तेणीनी विषयवासना पण पूर्ण करवानो नथी एम ज्यारे चोकस जाएयुं त्यारे ते ( सूरिकांता ) अन्य पुरुष साथे बुब्ध थई. एम जाणीने जे, हवे ए जार महारेशा कामनो के. एतो सामी मने थामखील करनारो थई पमवाथी स्वेछाए महाराथी वर्ती शकाशे नहीं, माटे ए नजरथी वेगलो क्यारे थाय ? एवो लाग तपासवा लागी. एक वखत राजाए बह (बे उपवास) को हतो, तेना पारणाना दीवसे ए सूरीकांता राणीए जोजनमा विष नेलव्यु, अने ए विषमिश्रितनोजन राजाने खवराव्युं. राजाना जाणवामां ते आव्यु पण संतोष परिणामे श्रामिक धर्म ओलखी रत्नत्रय धारी संवेग परिणामनी धारामां ते समाधिमां सूई रह्यो. ते वखते सर्व सामंत उमरावादि कुशलता पूबवा माटे श्राव्या, तेथी राणीए विचार्यु जे, रखे कोईना मुख पागल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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