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________________ २२ सूक्तमुक्तावली कामवर्ग थात् हजारो नदीउनुं पाणी समुजमां मलवा उतां पण ते पोतानी मर्यादा मुकी बलकाई जतो नथी तेम सत्पुरुष कोई पण वाते बलकाई जाय नही-गंजीरता मुके नही, तेवा मनुष्यने उत्तम जाणवा. ७॥ परनो थोडो पण गुण ग्रहण करी अवगुण ढांकनार श्रीकृष्णनोप्रबधं. सौधर्म इंजे एक वखत पोतानी सनामां बेग थका वखाण कर्यु के मृत्युलोकमां श्रा समयने विषे श्रीकृश्न जेवो गुणग्राहि कोई नथी. ते वातने अणसदहतो एक मिथ्यात्वी देवता तेनी परिदा जोवा सारू मृत्युलोकमां आव्यो. श्रा वखत श्रीकृश्नजी. रयवामीथी पाना फरी पोताना नगर जणी श्रावता हता. तेमना मार्गने विषे देवताये एक पुगंधमय सडेलो, के जेमां क्रोम गमे कीमा तरवरी रह्या डे एवो कुतरो विकुर्वीने मुक्यो. तेनी पुगंधे करी हाथी घोडा सर्वे रस्तामां थंच्या. मनुष्यो नासिकाये वस्त्र देई उन्ना रह्या. परंतु कोई मनुष्य के पशु मात्र ए मार्गे जवाने शक्तिमान न थया, एटली बधी पूर्गंध उबलती हती. सर्व खारीने टटस्थ स्थंनी रहेली जोई श्रीकृश्ने तेनुं का. रण पुलवाथी सेवके कडं जे-महाराज ! मार्ग वच्चे एक सड्यो कोह्यो कुतरो पड्यो ने तेनी पूर्गंधता अतिशे उठले . तेणेकरी कोई आगल जई शकतो नथी. ते सांजलीने पोते हाथी हलकारी आगल आवीने हेठि दृष्टीये करी विलोकीने कहेवा लाग्या जे-बरे नाईयो ! एनो गुण तमे केम लेता नथी ? सेवक कहे जे-वामी ! एमांहे शो गुण जे ? श्रीकृश्ने कडं जे, जुडने ! तेना दांतनी श्रेणि केवी ? जाणे हीरानी अथवा मुक्ताफलनी पंक्ति ज होयनी ! एनाथी पण उजली केवी ते सुंदर दीपेने ? श्रीकृश्ने कुतरानो कोई पण अवगुण जोयो प्रकाश्यों नही. परंतु तेनामां जे कांई थोडो पण वखाणवा योग्य गुण हतो ते कही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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