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________________ १४ सूक्तमुक्तावली अर्थवर्ग शरीर चालणी सरिखं कर्यु. पण ते चमकौसिक सर्प समता परिणाममा रह्यो. तेथी मर्ण पामीने आठमा देवलोकमां देवपणे उपन्यो. __ आ कथामां सार ए ग्रहण करवानो के, नगवान श्री महावीर स्वामीये सर्पनो उझार करवा माटे पोते वेदना सहन करी. तेम जे प्राणी वीजाने उपकार करवाने तत्पर रहे अने पोतानुं कुःख गणकारता नथी तेवा परहितचिंतक प्राणीनी कोड कोड वार बलीहारी जईये. माटे परहित चिंतक थq. वली चंडकोसियानी पेठे जे कोई प्राणी समता श्रादरशे ते सुखी थशे. माटे श्रावी पडेलु फुःख समताजावे सहन करवू. ५ सुखी थशामा ॥अथ लदर्भ। शिवतनय कु हरि सुत रति रंगे जे रमे रात सारी, शिवतनय कुमारो ब्रह्म पुत्री कुमारी ॥ हितकरि गलीला जेहने लनि जोवे, सकल सुख लहे सो सोहि विख्यात होवेद नावार्थः- हरिसुत कहेतां ईजनो पुत्र जयंत लक्ष्मी आपीने रती राणीनी साथे आखी रात रंगे रमण करतो हतो, शिवतनय एटले महादेवनो पुत्र जे गणपति ते ब्रह्मानी पुत्रीनो संगम पाम्यो ते पण लक्ष्मी वडेज, अर्थात् ए बे कुमर कुमरी पण लमीना जोगथी संगने पाम्या, वली जे पुरुषने लदमी दृष्टीना वीलासे करीने जोवे ते सकल सुखने पामे तथा ते लदमी थकी जगत्रने विषे विख्यातपणुं पामे, अर्थात् लक्ष्मीवाननी ख्याती सर्व स्थले थाय बे. लदमीना विलास उपर मिथ्यात्विना ग्रंथमां घणां संबंध कह्या बे.माटे लदमी जे संपदा ते जगत्रने विषे घणी वात जे.६ लखमि बल यशोदा नंदने विश्व मोदे, लखमि विण विरूपी शंन्न निक्षु न सोहे ॥ लखमि लदिय रांके जे शिलादित्यनज्यो,लखमि लदिय शाके विक्रमे विश्वरंज्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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