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________________ नाषान्तर सदित. २४ए नावार्थः-जे मायानो धणी एटले जे मायावी मनुष्य होय ते नितुर अर्थात् मनमां कपट नाव राखी मुखे उपर उपरथी सारू लगाडनारो होय तथा तेना हैयामां हेज कहेतां दयानाव होय नहीं, मायावी उलमां ने बलमां रहे अने असंतोषी होय, वली मायावी मीतुं मीतुं बोले पण ते मधुर-मीतुं बोलनार मो. रनी माफक विश्वास राखवा लायक न होय ! केमके मोर मधुर बोले पण सर्पने आखो ने श्राखो गली जाय , तेवोज मायावीने अविश्वासपात्र जाणवो. माटे माया लुंडी , तेनो त्याग करवो जुङ महिनाथ खामीए माया करीने तपनी वृद्धि करी हती, बीजुं कांई मा काम तो कर्यु नहोतुं, तो पण एटलीज मायाथी स्त्रीवेद बांध्यो. माटे मायाने परहरवी ए उत्तम मनुष्यनुं कर्तव्य . मकर मकर माया दंन दोष गया, नरय तिरिय केरा जन्म दे जेद माया॥ बलि नृप बलवाने विष्णु माया वहंतां, बहुयपण लघु जे वामनारूप लेतां ॥५॥ नावार्थः- माया ए दोषरूप विषतुं काम , तथा ए नर्क अने तीर्यचनी गति आपनारी बे, माटे तुं ते ( माया ) न करनकर. वली बलिराजाने बलवा (बेतरवा ) ने माटे श्री कृष्णे माया थकी वामन रूप कर्यु तेथी लघुताई पाम्या. माटे माया ( कपट ) न करवं. मायावी जे होय ते कुम काविठे करीबागट्याना पेटमा पेसी जाय, दंनपणुं धरी मायावीपणुं करी श्रागट्यानु कालगँ काढतां वार न करे, माटे मायावीने बांमवो. ५५ अथ लोन विषे॥ सुणी वयण सयाणे चित्तमां लोन नाणे, सकल व्यसनकेरो मार्ग ए लोन जाणे ॥॥इक खिण पण एने संग रंगे म लागे, जव जव उःख दे ए खोजने दूर त्यागे५३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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