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________________ नाषान्तर सदित. २२७ नाखवाथी जेमकायानी श्रानडबेट टले तेम तपरुपी सोनावाणीथी अर्थात् तपकरवाथी कर्मर्नु अपवित्राईपणुं मटे माटेतप करवो. तपविण नवि थाए नाश कर्म केरो, तपविण न टले ते जन्म संसार फेरो॥ तप बल लदि लब्धी गोतमे नंदिखेणे, तप बल वपु की, विष्णु वैक्रीय जेणे ॥४॥ जावार्थः-तप विना मागं कर्मनो नाश न थाय, तप विना जे जन्म जरा मरण तेनो फेरो न मटे, तपना प्रजावथी गौतमखामी तथा नंदीखेण मुनिने लब्धी उपनी, अने विष्णुकुमारे तपना प्रजावथी वैक्रीय ( लाख जोजनy) रूप कयु. ४४ ॥ तपना प्रजावे लब्धी उपार्जन करनार गौतमखामीनो प्रबंध ॥ श्री महावीरखामी लगवाने एक वखत देशना समये का जे-पोतानी लब्धियें करी अष्टापद तीर्थे जेजात्रा करे ते सिकिने पामे. ते वखत श्री गौतमस्वामी, जगवंतनी आज्ञा लेई जात्रा करवा माटे गया. ज्यारे अष्टापद पर्वतनी नजीक श्राव्या त्यारे त्यां पागल पडाव नाखी रहेला पंदरसे त्रण तापस तेमने जोर मांदोमांहे विचार करवा लाग्या के तप करवाथी थापणुं शरीर कृश थयेनुं ने तोपण आपणे था श्रष्टापद पर्वत उपर चढीने जात्रा करी शकता नथी, तो था हाथी जेवी कायावाला शी रीते चढी शकशे ? गौतमस्वामी सूर्यना किरण अवलंबीने चढ्या. ते जोई तापसे धार्यु के, खरेखर लब्धिवंत जणाय नेमाटे ए ज्यारे उतरीने हेग श्रावशे त्यारे श्रापणे तेना चेला थश्शुं तो आपणुं काम थशे. गौतमस्वामीए, जरत महाराजाए जरावेला सुवर्णना चतारि श्रह दश दोय ए अनुक्रमे बीराजमान करेला चोवीसे तीर्थकरना बिंबने जुहारी-दर्शन करीने जावस्तव चैत्यवंदन कयु. जगचिंतामणीनी आखी स्तुति करीने पनी प्रासादनी बाहिर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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