SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११७ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग काम करी शकाशे नहीं, त्यारे हे नाई ! तुं पोतेज कहे, के तहारो सखाई एटले सहाय करनारो कोण थशे ? एक धर्म सखाई थशे माटे परतुं हित करवू. ( उपकार करवो ). ३५ ॥ नदि तरू फल खावे ना नदि नीर पीवे,जसधनपरमार्थ सो नले जीव जीवे ॥नल करण नरिंदा विक्रमा राम जेवा, परदित करवा जे उद्यमी ददं तेवा ॥३६ ॥ नावार्थ- काडने जे फल थाय ने ते काम पोते खातुं नथी तेम नदीनुं पाणी नदी पीती नथी, एतो पारकाने काम आवे ने. अर्थात् काडनां फल अने नदीनुं पाणी बीजा जीवो खाय अने पीए . ते प्रमाणे जेनुं धन परमार्थमां वपराय डे, अर्थात् बीजाना काममां श्रावे ते प्राणी जले जीवे, एटवे तेवा माणसनुं जीवq सार्थक बे, ते दीर्घायुषी था. एवो उपकार करनार कोण थया ने ? नलराजा के जेणे कुवामां पडेला सर्पने चारे बाजु अनि सलगतो हतो तेम उतां पण तेमांथी काढ्यो, तथा करणराजाए जगत्ने विषे दीन दुःखीयाउने उद्धा, वली विक्रमादित्ये पोताना अव्यनो पर उपकारमा व्यय को अने रामचंअजीए परहितनां कार्य कर्या, एवा उद्यमी, समर्थ अने डाह्या हता. एवी रीते मनुष्ये बीजाने उपकार करवो ए तात्पर्यार्थ बे. ३६ ॥अथ उद्यम विषे ॥ रयण निहितरीने उद्यमे लचि आणे,गुरु जगति करीने उद्यमे शास्त्र जाणे ॥ उख समय सहाई उद्यमे जलाई, अति अलस तजीने उद्यमे लाग नाई॥३७॥ जावार्थः-समुज तरवाना उद्यमे करी लक्ष्मी लावे, गुरुनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy