SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाषान्तर सदित. ११५ हे राजान् ! एने सिंहासने बेसारो अने तमे तेना सन्मुख हाथ जोमी हेग बेसो. राजाए तेमज कीधुं, अर्थात् चोरने सिंहासन उपर बेसारी पोते तेना सन्मुख हाथ जोमी जना रह्या. चोरे (चंमाले) मंत्र कह्यो. राजाने तत्काल श्रावड्यो. अनयकुमारे राजाने कह्यु के, ए चोर अने नीचकुलनो डे परंतु तेनी पासे विद्या डे माटे ए पूजवा योग्य . गुरुने सरपाव आपवो जोईए. कह्यु केः-"एक कर फल दातारं ॥ योगुरु नैव मन्यते ॥ श्वानजोनी सतं गत्वा । चंडालेष्वपि जायते ॥१॥ अर्थ-एक अक्षर शिखवनारने जो गुरुबुझिये न माने तो सो जव कुतराना अने हजार नव चंमालना करे." माटे ए तो गुरु थयो तेथी एने जी. वतदान द्यो. चंडाल(चोर)ने गेडी मुकी राजाश्रेणीके तेने पोताने घेर बोलावी लाख पसाय को. आ कथामां सार ए ग्रहण करवानो ने के, विनय ए वडो डे. श्रेणीक राजाए विनय को त्यारेज तेने विद्या श्रावमी. विनयथी थोडं जएयुं पण घणुं विस्तार पामे , माटे सर्वे मनुष्ये विनय करवो. ३२ ॥अथ विद्या विषे॥ अगम मति प्रयुंज्ये विद्ययें कोन गंजे, रिपु दल बल नंजे विद्ययें विश्व रंजे ॥धनथि अखय विद्या सीख एणे तमासे,गुरुमुख नणि विद्यादीपका जेम नासे॥३३॥ नावार्थः-विद्यावान होय ते पागल बुधि प्रयोग विचारे श्रने तेने कोई गांजी (उगी) शके नही, विद्यावान शत्रुना दल कहेतां लश्करना बलने नागी नाखे अर्थात् तेने कोई जीती शके नही अने विद्याथी था जगत रंजे कहेतां खुशी थाय, धन करतां पण विद्या अक्षय खजानो डे, केमके धन खरचतां खूटी जाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy