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________________ १०० सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग ( माथा उपर ) समाया तेटला जर्या, अने रात्रे ते पण मसामां पासेज रह्यो. समताना जंडार गजसुकमाल मुनी बलता अग्निए करी तडतम नसो तुटतां पण सोमील ससराना उपर लेशमात्र द्वेष नही लावतां ते करेला अपकारने बदले तेनो मनने विषे उपकार मानता विचार करवा लाग्या के, या जव चमणनो ऊट निस्तार लाववामां ए महारो खरेखरो सखाई थयो बे. वली निश्चल मने करी स्थिर थई जीवदया माटे चिंतवन करवा लाग्या के, र खेने अंगारो मात्र मूंई पडे ! रखेने कोई जीवनी विराधना थाय ! एवी रीते समतामय श्रपक श्रेणीए शुद्ध अध्यवसाये करी शुक्ल ध्यान ध्यातां थकां ते अंतगम केवली थईने मोक्षपद पाया. 4 गजसुकमाले दीक्षा लीधा पढी कृष्ण वासुदेव रात्रे पोताना मनमा चितवन करवा लाग्या के, महारो जाई संजमेकरी वमील पण ते वयमां न्हानो बे, तेनाथी संजम केम पलशे ? तेमाटे सवारे प्रभु पासे जई ते विषे योग्य तजवीज करीश. समय यतां कृष्ण वासुदेव प्रजुने वांदवा श्राव्या. प्रभुने वांदी सघला साधुने वंदना करी, तेमां गजसुकमालने न दीवा. ते वखते प्रजुने पुढवा लाग्या के - हे जगवन् ! हे स्वामी ! श्रमारा जाई गजसुकमालजी क्यां बेठा बे ? प्रभुजीए जणाव्युं जे-ते तो अनंत सुखना जोगी थई बेठा, एटले नजरे क्यांची यावे ? अनंता सुख आवासमां पेठा, माटे हवे ते स्वरुपे तो तेमनां दर्शन दुर्लभ बे. दे कृष्ण ! ए सिद्धिपद पाम्या माटे ईहां थकी नमस्कार करवा योग्य थया. एवं सांजली श्रीकृष्णे पुब्युं के - हे स्वामी ! एम तत्काल सिद्धगतीने केम पाम्या ? जगवंते कह्युं के, तेमने साहाज्यनो करणदार मल्यो. कारण जोगनो मेलवनार मढ्यो एटले ते कारणने जोगे करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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