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________________ ყვ सूक्तमुक्तावली धर्मवर्ग सिवाय जे मरजीमां श्रावे ते मागवानुं कड़ेतां कैकेयीए पो ताना पुत्र जरतने राज्य श्राप ने राम लक्ष्मण वनमां जाय एवी पोतानी ईछा दर्शावी. दशरथराजा श्र वचन सांजली घणो खेदातुर थयो, पण पोते वर श्रापेलो हतो तेथी जरतने राज्य श्राप्युं. राम, लक्ष्मण अने पोतानी प्रिया सीता सहित वनवास गया. वनमां वसतां एक वखत रावणनी बहेन सुर्पनखानो शंबुक नामे पुत्र सूर्यहास खड्गनी विद्या साधतो हतो, तेने ब मास थवाथी खड्ग प्रगट थयुं दतु एवामां फरतो फरतो लदमण ते स्थले श्राव्यो. तेथे ते पूर्व खड्ग लेई तेनी धार तपासवा माटे वंशजाल कापी, तेथी तेमां बंधे मस्तके रहेला विव्यासाधक शंबुकनुं मस्तक बेदाई गयुं. ते देखी लक्ष्मण अति शोक करतो निरपराधी अने हथी आररहितने हवाथी पोताना ए साइस कर्मने धिक्कारतो खङ्ग लेई त्यांथी चाली नीकल्यो. एटलामां शंबुकनी माता सुर्पनखा पोताना पुत्रने माटे खगनी पूजानी तथा पारणं कराववानी सामग्री लेने त्यां श्रागल श्रावी. तेणीए पुत्रनुं मस्तक बेदाएलुं दीतुं, तेथी शत्रुनी शोध करवा लागी. तेवामां नजीकज लक्ष्मणने जोयो. तेना उपर मोहित थवाथी शत्रुवटने कोराणे मुकी काम जोगनी ईछाए तेनी प्रार्थना करवा लागी. लक्ष्मणे तेली ने राम पासे मोकली. रामे शुद्ध सीलवंत ने न्यायी होवाथी तेना प्रति तिरस्कार कर्यो क्रोधातुर थई सूर्पनखाए त्यांथी चाली नीकली पोताना पति खरदुषण पासे श्रावी पुत्रमरणनी वात जणावी तेनुं वैर लेवाने क. खरदुषण, रामचंद्र साथे युद्ध करवा आव्यो. ते वखते लक्ष्मण सिंहनाद करवानो संकेत करी रामचंद्रने सीता पासे रहेवा देई युद्ध करखा गयो. खरदुषण ने लक्ष्मण बच्चे युनो श्रारंभ थयो. सुर्पनखा पतिने युद्ध करवा मोकलीने बेसी रही नही, पण वली ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003685
Book TitleSuktavali yane Suktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1911
Total Pages368
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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