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________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः॥ अथ पंमित श्रीमोहनविजयविरचित नर्मदा सुंदरीनो रास प्रारंनः॥ प्रजु चरणांबुजरज तणी, वनीने होय ढोक ॥ मायो वली जग जेहनो, बिहु अदरने श्लोक ॥१॥ धारक अतिशय एहवा, जिन सुरगिरि परें धीर ॥ हुं प्रणमुं ते वीरने, गौतम जास वजीर ॥२॥ कवि सुरतरु शोजाववा परनृत तनया पूत ॥ ज्ञान चंजने चंडिका, कृपा करी अति नूत ॥३॥ जड तालय मुसा जणी, जनु रूपा स्वयमेव ॥ शब्दोदधि तारण तरी, सा जारति प्रणमेव ॥४॥ गुरु गुण मणि हारावली, धरिये हृदय तटेण ॥ कीधो तजी पिपीलिका, मत्त मतंग जलेण ॥५॥ जिन गुणहर जारति सुगुरु, प्रणमी चरण रसेण ॥ धर्मोद्यम कीजे सदा, सवि सुख लहिये जेण ॥६॥ चार नेद ते धर्मना, दान शील तप नाव ॥ तेहमां शील विशेष डे, कष्ट रत्नागर नाव ॥ ७॥ चतुश्रवण शीलें करी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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