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________________ (२) म ॥ नाणादिक त्रण रत्नमय, कहीयें ताहि सुमर्म ॥ ॥७॥ नाणादिक जिन उपदिस्या, निर्मलता गुण हेतु ॥ पण विशेष नाणज कह्यो, सोधितणो संकेतु ॥ ॥ अकल पदारथ सोधिये, परमारथथीनाण॥ निरुपाधिक लोचन नवु, त्रीजुं नाण प्रमाण ॥ १०॥ निःकारण बंधव समो, नवजल तरण उपाय ॥ ख लता पुरगति खाममें, आलंबन निरपाय ॥ ११ ॥ अंतर तिमिरने नेदवा, नाण दीप निरबाध॥नरता दिक नृप नाणथी, नवजल तरया अगाध ॥ १२ ॥ नाण विपदथी उछरे, नाण दीये सवि थोक ॥ मल यसुंदरी जिम सुख लही, चित्तधरी एक सलोक॥१३॥ किम आपदथी उतरी, किम पामी सुख गय॥ तास चरित्र चौपै कडं, सुणजो सहु चित्त लाय ॥ १४ ॥ थालश निझा परिहरी, उभी विकथा मित्र ॥ सुणतां मलयानी कथा, करजो करण पवित्र ॥ १५ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥अजितजिणंदसुंप्रीतमी॥ए देशी॥ ____॥ जंबूद्वीप सोहामणो, सोहे सोहे हो सवि बीप विचाल के, लवण समुझे वींटी, साख जोय हो वरतुल जिम थालके ॥ जं० ॥ १॥ तेमांदे क्षेत्र हरत अछे, खटखने हो मंमित सुविशाल नव नव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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