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________________ (३०६) काष्ट अंगारनें कारणेजी, किणहीकें था पिया आण॥ गतदिने सीममा सहजथीजी, सामटा ते मल्या टां ण ॥ सां०॥ ॥ तेह कावें करी पापिणीजी, आवरे साधुनें तेम।चिहुं दिसें निरखतां साधुनुंजी, अंग दीसे नहीं जेम ॥ सां०॥ए ॥ विंटतां साधुने काठझुंजी, आणी हत्या महा व्याप ॥चजगश्पुरक संसारनेजी, विंटीयो तेणी आप ॥ सां०॥ १० ॥ पूर्व नव वैरथी तेणीयेंजी. निर्दयायें महाघोर ॥अगानिसलगानीयो चिहुं दिसेंजी, पवनथी जागीयो जोर ॥सां०॥११॥ मुनिवरें कालस्सग्ग ध्यानमांजी, देखी उपसर्ग मरणां त ॥ कीधी आराधना चित्तथीजी, तेम रह्यो योग रस शांत ॥ सां०॥ १२ ॥ खंग.चोथे खरी खांतशुंजी, एह तेत्रीशमी ढाल ॥ कांतिविजय कहे हवे शहांजी, साधशे साधु जयमाल ॥ सां० ॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ उद्दीप्यो वनदव समो, ज्वाल जिव चनफेर ॥ मुनि वरनें तन पाखतें, खातो घूमणिधेर॥१॥कोमल तनु क पिरायर्नु, बाले वन्हि तपंतामूलथकी कनका तणां, जा पे सुकृ । दहंत॥२॥विकटोपत्र पीमता, सहेतोश्री ऋषियोधातागो निजातम प्रत्ये, देवाश्म प्रतिबोध॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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