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________________ (२१७) ॥चि० ॥ धर्म तणो उपदेश, चंडयशाये इम दीयो ॥ ज० ॥ चि० ॥ रीज्या दोय नरेश, पुरजन सघलो हरखियो ॥ ज० ॥१७॥ चि० ॥ चोथा खंमनी ढा ल, एह कही बावीशमी ॥ न चि०॥कांतिवि जय जयमाल, वरिये सुणतां मनगमी॥ ज० ॥१०॥ ॥दोहा॥ ॥ शूरनरेशर अवसरें, पूछे गुरुनें एम ॥ जगवन् मलया जलथकी, ऊखें उतारी केम ॥१॥ सुख शा तायें जलधिथी, थाणी उतारी कंठ ॥ कारण ते सु णवा तणो, ने अमने उतकंग ॥२॥ केवलनाण दि वायरू, महिमावंत महंत ॥ चंऽयशा सूरीश्वरू, श्म कारण पनणंत ॥ ३ ॥ ॥ ढाल त्रेवीशमी ॥ तीरथ ते नमुं रे ॥ए देशी॥ .॥सुण राजेसर चित्त धरी, जलनिधि तरी रे, म खया मीन सहाय, कारण ते कहूं रे ॥ वेगवती ना में इती, जेह पाखती रे, बालाने धाय माय ॥का ॥ ॥१॥ मुर्त्याने कालेमरी, ते श्रवतरी रे ॥ जलनिधि मा गजमान ॥का० ॥ पमता सारममुखथकी, आत कुःखयकी रे, श्रीनवकारमा लीन || का० ॥२॥ गज मलने वांसे पमी, जाणे चढी रे, कमला गजने पूंव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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