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________________ (२६१) म नगरें वासो बसे रे, ते जणी मूको एह म०॥द०॥ ॥६॥ कहेवामयुं महारे मुखें रे, अम नूपें श्म तु ऊ म ॥ द॥ सत्कारी मूको परो रे, पालो राज्य सखुज म ॥ द०॥७॥ खमिये पण एकवारनो रे, कीधो वरांसे वंक म ॥ द॥ पमिया पण मुख में ग्रह्या रे, दंत फिरि निज अंक म ॥ द०॥७॥ वाहाली पाटु गायनी रे, जो श्रापे पयपूर म॥ ॥ द०॥ मीग माटे खाश्ये रे, एवं पण मामूर म॥ ॥द० ॥ ए॥ धनपति कदिहिक पांतरे रे, तोते कि म न खमाय म० ॥ द० ॥ खिरतो पण दल अंगणे रे, फलियो तरु न कपाय म०॥ द० ॥ १० ॥ श्र म पें बांहें ग्रह्यो रे, ते पुःखीयो किम थाय म॥ ॥ द०॥ गूंजे जे वन केसरी रे, त्यां कुंजर न वसा य म ॥ द० ॥ ११ ॥ शूर अडे तुं साहेबा रे, पण तुज कटक अलप्प म० ॥ द.॥ सायरमां जिम सा थुङ रे, थाश्श त्यां तुं गमप्प म० ॥ द०॥ १२ ॥ ते एहनें मूकावशे रे, तुजने शिक्षा देशमः ॥०॥ एह वातें मत आणजे रे, शंका बल उमहेश्म० ॥ ॥द०॥ १३ ॥ थाश्श मां तुं आकलो रे, जुजबल में विशवास म०॥ द० ॥ बे जण उषध एकनुं रे, ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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