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________________ ( २०० ) ॥ "" ॥ ए नृपनें हुं लखुं रे, तात श्वसुर कुल द्वेषी ॥ शील विखमी माहरु रे, लेशे सुत संपेखी ॥ लेशे सुत ईम चिंती निःशासी, बोली बाला दुःरक चकासी ॥ मुज चिंता तुमनें वे केही, पुण्य विना रजलुं हुं एही ॥ जी० ॥ १० ॥ सेवक पजणे नूपनें रे, जारी एडुः ख जारें ॥ न शंके इष्ट वियोगथी रे, कहेतुं कांई करा रें ॥ कहे कांई शंके मत पूढो, दुःखमां वली वली लागशे उठो ॥ मीठें वयण हवे यासासी, उपचरणा की जें कांई खासी ॥ जी० ॥ ११ ॥ वली नृप पूढे मा निनी रे, तो पण कहे तुज नाम ॥ मंदस्वरें कदे माहरु रे, मलया नाम निकाम ॥ मलया नाम निकाम नारो, तेहथकी न लह्यो दुःख आरो ॥ सन्मानी नृप मंदिर याणी, सुख साजें राखी जिहां राणी ॥ जी० ॥ १२ ॥ व्रण संरोहण उषधि रे, रूजवियां व्रण तासो ॥ दासी दास समीपनें रे, थापी पृथग यावा सो ॥ थापी पृथग वसन शणगारें, संतोषी नूपें तेथी वारें ॥ मुजनें म नूपति सतकारें, वारु नहीं आगें ईम धारे ॥ जी० १३ ॥ ते दिनथी ततपर हुई २, करवा धर्म विशेष ॥ ध्यान धरे अरिहंतनुं रे, बांकि म विश्लेष ॥ बांकि म विश्लेष विवेकें, आ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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