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________________ ( १ ) ॥ रजनी योग रे ॥ गो० ॥ देखी जोवा सारिखो, चहेरे सघला लोग रे || गो० ॥ ॥ वासें पोहोंचो तुमें, नहीं या निरधार रे || गो० ॥ दुःखियां मुज मा वापनें, मलशुं जई ई वार रे || गो० ॥ २० ॥ श्रा कारें इंगित गतें, ए नहीं नीची जात रे ॥ गो० ॥ कपट पणें उत्तर करे, कारण इहां न जगात रे ॥ ॥ गो० ॥ ११ ॥ सार्थपति म चिंतवी, बोल्यो वचन विचार रे || गो० ॥ तुज चंगालपणं कदे, नहीं जांखं सुण तार रे ॥ गो० ॥ १२ ॥ मुज आवासें मानिनी, स्वेच्छायें रहो याय रे || गो० ॥ तुज वचनें बांध्यो सदा, रहेशुं हुं मन लाय रे || गो० ॥ १३ ॥ इम कहेतो ऊमपी लीये, छांकथकी तस बाल रे ॥ ॥ गो० ॥ तस्कर जिम चाल्यो धसी, आवासें ततका ल रे || गो० ॥ १४ ॥ शील विखंगन जयथकी, ते थई कार्यविमूढ रे || गो० ॥ तोपण ते पूंठें चली, नंद न नेहारुढ रे ॥ गो० ॥ १५ ॥ दरख वचन बोलावतो, बालाने बलसार रे || गो० ॥ सुत निज वसनें गोप वी, पेठो नई आगार रे ।। गो० ॥ १६ ॥ दुःख कर ती बानें ग्वी, आसासें देई बाल रे || गो० ॥ दासी एक प्रियंवदा, थापी करण संजाल रे ॥ गो० ॥ १७ ॥ • For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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