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________________ ( १५१) दिव्य कठिन ए एहनें रे, देतां मन न वहंत॥स०॥ दोष नहिं नूपति जणे रे, गुणही एम लहंत ॥ स॥ ॥रणा समसूधोवानी ग्रहे रे,वाधे सुजश अताग ॥सण॥ जात्य सुवर्ण दुताशने रे, ताप्यो ले गुण जाग ॥ स ॥ ॥२०॥ नररूपा विनता तिहां रे, जपती मन नव कार ॥ स ॥ श्लोकारथ निरधारती रे, ऊघामे घट बार ॥ स ॥१॥ निर्जय करकमलें ग्रह्यो रे, वि षधर अति रोषाल ॥ स०॥ लोक लयो अचरिज नवो रे, निरखी निरुपम ख्याल ॥ स ॥२॥नाग ह जे निर्विष मुखो रे, रह्यो तस वदन निहाल ॥ स॥ नेह निविमरस पूरीयो रे, संबंधे ततकाल ॥स०॥३॥ साचो साचो श्म कहे रे, पामे नर करताल ॥ स ॥ त्रीजे खंमें ए कहीरे, कांतें त्रीजी ढाल ॥ स० ॥२४॥ ॥दोहा॥ ॥ केलि करंतो करतलें, काढ़ें मुखथी हार ॥ ते मखया कंठे वे, मुखें ग्रही फणिधार ॥१॥ ते निर खी विस्मित हुर्ड, नूप प्रमुख पुर लोक ॥ हार पि गणी श्म कहे, करता नयणे टोक ॥२॥ खखमी पुंज किहांथकी, श्राव्यो एद अचिंत ॥विण वादल परसात ज्यु, करे अचंन अनंत ॥३॥ नाल तिल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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