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________________ ( २४३ ) विजयें कही रे, सुंदर महोटी चौदमी ढाल रे ॥ ॥ २२ ॥ सां० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥इम उपदेश ते सांगली, हरखी परषद सार ॥ गुरुनें वांदी थानकें, पहोता सदु यागार ॥ १॥ तव कहे नृप कर जोडीने, सांजलो गुरु गुणगेह ॥ नव स्थिति क्यारें पाकरों, माहरी कहो ससनेह ॥ २ ॥ तव गं धर सुस्थित कहें, सांजलो तुमें माहाराय ॥ पांग व सहस्र ते वर्षनुं, वे महोदुं तुम खाय ॥ ३ ॥ तिहां सूधी तुमने घणुं, बे नोगावलि कर्म ॥ जव ते स्थिति पूरी थशे, तव वधशे तुम जर्म ॥ ४ ॥ पूरव जव तु म सांजली, केवली मुनिचंद पास ॥ संयम नृपशर युं ग्रही, लेहशो शिव पदवास ॥ ५ ॥ ए अधिका र ते सांगली, हरण्यां राणी राय ॥ पहोतां सहु निज मंदिरें, वंदी गुरुना पाय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल पन्नरमी ॥ ॥ बेडो नांजी ॥ ए देशी || हवे हरिबल निज मं दिर यावी, करे निज सुकृत करणी ॥ वसंत सिरी पट्टराणी यादें, करें सघली पुण्यतरणी ॥ १ ॥ नवि यां सुणजो, हरिबलनी जे करी ॥ ज० ॥ चडवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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